सर्दी के दिनों में अंगूरा तालाब के किनारे अपनी जेब में चने भरे बैठा था। एक चना निकालता ,फिर बड़ी मस्ती से एक-एक दाना कुटुर कुटुर चबा जाता। साथ में इतना मधुर गाना गा रहा था कि सरस्वती आनंदित हो उसके आस-पास ही घूमने लगीं। उनकी बहन लक्ष्मी भी घूमते-घामते उधर ही आन निकली। बोली-“ओ […]
Author: सुधा भार्गव
बालकहानी- खिलखिलाता परिवार
नदी के किनारे-किनारे सुंदरम गाँव बसा हुआ था। ऊंचे ऊंचे पहाड़ ,बहता हुआ पानी,महकते फूल और हरियाली के बीच खिलखिलाता गाँव। जो वहाँ आता जाने का नाम न लेता। गांववालों को ही नहीं,बच्चों तक को को पेड़ पौधों से बड़ा प्यार था। सड़क के किनारे लगे छायादार वृक्षों को न कोई कुल्हाड़ी से चोट पहुंचाता […]
कविता : प्रशंसा
प्रशंसा सुनकर लोग फूलकर कुप्पा होजाते हैं एक क्षण में अपनी औकात भूल जाते हैं। चलते हैं जमीन पर सोचते हैं आकाश की पल से पल में ही क्या से क्या हो जाते हैं। प्रशंसा एक बला है,पर अपने आप में एक कला है प्रशंसा ने बड़े-बड़े गुल खिलाए दिन में ही तारे दिखाए। मूर्ख […]
मेरी दो लघुकथायेँ
1-जादू -अरे पापा आपकी अलमारी से इतने नोट झड़ पड़े। मैजिक–। कहाँ से आ गए। मुझे तो आप एक रुपया भी नहीं देते। -तू सब लेले। -सच में पापा। बच्चा दोनों हाथों से उन्हें बटोरने में लग गया। -क्यों इनकी रेड़ पीट रहा है। आप तो इसे बड़ी छूट दे रहे हैं। कहीं न सही […]
लघुकथा : असली नकली
मनोहर बहुत दिनों से ससुराल न जा पाया था। उसके ससुर का स्वास्थ्य कुछ ढीला ही चल रहा था इसलिए वे उससे आ कर मिलने का बार-बार आग्रह कर रहे थे। मौका मिलते ही वह अपनी पत्नी महक के साथ ससुराल चल दिया। बातों ही बातों में ससुर जी बोले- ‘मैंने ज़िंदगी के खास-खास काम […]
बालकहानी : पहले काम फिर नाम
चीकू एक प्यारा सा सुंदर बच्चा था । उसके घर में जानवरों से सबको प्यार था । उसके पापा ने तो एक बड़ा सा कुत्ता पाल रखा था । जिसका छोटा सा नटखट बच्चा था डिग्गू । एक दिन वे अपने मित्र के यहाँ से बिल्ली का बच्चा उठा लाये ।चीकू तो उसे देख उछल पड़ा -आह कितना […]
लघुकथा – अनुभूतियाँ
-ओह !तो तू इस मकान में रहती है? -इसे मकान न कहो—यह तो मेरा घर है। इसमें मुझे आराम मिलता है। अपनापन महसूस होता है। हर चीज मुझे प्यार करती नजर आती है। -ऊँह, बेजान का तो बेजान प्यार ही हुआ। न तेरे यहाँ चहल-पहल। न शोर शराबा। तू तो यहाँ अकेली है। बिलकुल अकेली। […]
लघुकथा : सुहागिन
वृद्ध पति पत्नी जल्दी ही रात का भोजन कर लेते , अतीत की यादों को ताजी करते हुए टी वी देखा करते । एक दिन वृदधा जल्दी सो गई पर आधी रात को हड़बड़ाकर उठ बैठी –अरे तुमने मुझे जगाया नहीं !मेरी सीरीयल छूट गई । -बहुत खास सीरियल थी क्या ? -हाँ ! तुमने […]
लघुकथा : संदेह के घेरे
जावित्री की साध थी कि डाक्टर बेटे कि लिए बहू ही डॉक्टर हो और वह साध पूरी भी हो गई । पता लगते ही बधाई देने वालों का तांता लग गया । विवाह के अवसर पर सावित्री बोली –जावित्री तेरे मन की मुराद पूरी हो गई । -हाँ दीदी ,कल तो गीत संध्या में बहू […]
लघुकथा : बंद ताले
छोटे भाई की शादी थी। दिसंबर की कड़ाके की ठण्ड। हाथ पैर ठिठुरे जाते थे, पर बराती बनने की उमंग में करीब १२० लोग लड़कीवालों के दरवाजे पर एक दिन पहले ही आन धमके। पिताजी सुबह की गुनगुनी धूप का आनंद लेते हुए जनमासे में चहल कदमी कर रहे थे। उन्होंने देखा कि कुछ दूरी […]