व्यंग्य : भारत और भारत की खोज
विश्व-पटल पर जब से भारत की खोज हुई, तब से अब तक भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में नई-नई खोज हुई | पहले भारतीय लोग राम-रहमान से काम-कला तक के कलात्मक खोज में तल्लीन रहा करते थे, जिसके बदौलत ही विश्वगुरु की मानद-उपाधि से उपकृत हुआ करते थे और दुनिया भर के लोग दिया भी करते थे |
वैसे कलात्मक खोज तो अब भी जारी है मगर, बस फर्क इतना भर हुआ है कि अब किसी भी खोज के लिए चालबाज ही अधिकारी है क्योंकि चालबाजी ही उत्तराधिकारी है | या फिर यूँ कहें कि – चालबाजों में चालबाजी की ही मारा-मारी है |
तब ही तो, आज पदासीन, अपदासीन, उदासीन, गमगीन किसी से भी पूछ लें – सभी कहेंगे – मैं, ट्रिक पास करके ही यहाँ तक पहुंचा हूँ | इतना ही नहीं, बी० ए०, एम० ए० भी करी है | और अब पी० एच० डी० के लिए भी प्रयासरत हूँ | यही ससुरी कठिन है फिर भी हिम्मत से प्रयत्नशील तो होना ही पड़ता है अपनी-अपनी अक्ल, बौद्धिक क्षमता के साथ पथ-प्रदर्शक के मार्ग निर्देशन में जुटा पड़ा हूँ |
हर रोज कुछ न कुछ नये-नये शोध-पत्र, इस देश के सर्वमान्य और सबसे बड़े विश्वविद्यालय के सार्वजनिक सूचना-पटल पर रखता आया हूँ, मुझसे पहले भी कईयों ने अपने शोध-पत्र सूचना-पटल को समर्पित कर चुके हैं | पर आज तक किसी को भी सर्वमान्य डाक्टरेट की डिग्री नहीं मिली |
जब भी अलंकरण समारोह की घड़ी आने को होती है तो, उससे पहले ही उसी विषय-वस्तु पर नई खोज सामने आ जाती है जो मेरे जैसों के दिन-रात के मिहनत पर ओला-वृष्टि साबित कर जाती है |
इस जनता विश्वविद्यालय के कुलाधिपति का तो कहना ही क्या ? अन्य किसी के भी झोली में यह सर्वमान्य उपाधि भूल से भी न चली जाय, जो भविष्य में उनकी कुर्सी के लिए खतरा पैदा कर सके | इसके निमित्त अपने खुफिया तोते पाल रखे हैं |
जहाँ, जब भी कोई अपना प्रयोगात्मक शोध-पत्र प्रस्तुत करे तो तुरंत आनन-फानन में, अपने पालतू और खूंखार तोते को आजाद कर देते हैं | जो पलक झपते ही शोधार्थी द्वारा प्रस्तुत प्रयोगात्मक शोध – पत्र के पन्नों को चीर-फाड़ कर एक नये शोध-पत्र का पथ प्रशस्त कर जाते हैं | इस तरह शोधार्थी का दिल तो टूटता ही है | फिर भी अपनी जिद्द पर अड़ा शोधार्थी एक नये उत्साह, उमंग से सुझाए गये नये प्रयोगों को सम्मिलित करते हुए एक और नये प्रयोगात्मक शोध-पत्र प्रस्तुत करने में प्राण-पन से जुट जाता है और इस तरह बार-बार एक नया शोध-पत्र कुलाधिपति, जनता विश्वविद्यालय के समक्ष प्रस्तुत करने के परम्परा से चल पड़ी है |
इसी कड़ी में – जीप से बोफोर्स तक, पशुओं के चारा से बच्चों के चारा तक, टू-जी से कोयलाजी तक, सफाई गंगा से आम-जनता को नंगा करने तक, इतने व्यापम और व्यापक शोध-पत्र प्रस्तुत किये गये | फिर वही ढाक के तीन पात |
वैसे तो लोग डाक्टर इंजीनियर, वकील प्रोफेसर आदि-आदि की नकली और फर्जी डिग्रियां खरीदकर बेशक खुद को तसल्ली दे लें मगर, सर्वमान्य चालबाजों की उपाधि से कभी भी विभूषित नहीं हो सकते | क्योंकि, इस “नहीं” के नेपथ्य में ईर्ष्या की आग जल रही होती है, जिसकी दाहक क्षमता के आगे सभी शोध-पत्र जलकर ख़ाक और रंग से काले होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे | जबतक आम भारतीय जनता, भारतीय न होकर इंडियन के गर्व में सोते रहेंगे |
क्योंकि ये, अन्धविश्वासी बुद्धुओं का देश्दुनियाँ के नजरों में इंडिया है और देशवासी इंडियन | शायद इसलिए भी पूरे विश्व को आमन्त्रण है कि सभी अपने-अपने चालबाजी के लिए शोध-पत्र प्रस्तुत कर सकें | प्रयोगार्थ यहाँ की उर्वरा भूमि और वातावरण सर्व-सुलभ है |
ये जो काले रंग का ख़ाक है, देश में ही नहीं विदेशी तहखानों में अतिसुरक्षित रखे गये हैं, ताकि भविष्य में विश्व-विख्यात नोबल-पुरस्कार से नवाजा जा सके |
अंत में आप सभी को आभार भरा आमन्त्रण और अभिनन्दन |