स्वास्थ्य

आप ही तय करें : माइक्रोवेव ओवन कितने निरापद हैं ?

भागती – दौडती जिन्दगी, समय की तथाकथित गम्भीर कमी, भागते-दौड़ते खाना निपटाना, पौष्टिक भोजन के प्रति एक किस्म की गम्भीर उपेक्षा और तन-मन और बुद्धि के सुस्वास्थ्य लिए अत्यन्त ही जरूरी भोजन जैसी अति महत्वपूर्ण, सम्माननीय तथा समयसाध्य दिनचर्या को अनावश्यक बोझ मानते हुए, उसके प्रति निपटाऊ और चलताऊ दृष्टिकोण अपनाना आदि ने दैनन्दिन जीवन में हमें अनेक अवांछित स्थितियों का गुलाम और शिकार बना दिया है I इस अन्तहीन भागदौड़भरी जीवनचर्या से अनावश्यक तनाव, मानसिक अस्थिरता और बात – बात पर क्रोध एवं चिड़चिड़ापन हमारे हमसफर बन बैठे हैं और फिर वे अनायास ही मनोशारीरिक बीमारियों में रूपान्तरित हो जाते हैं I दुःख और आश्चर्य का विषय तो यह है कि जानते और भोगते हुए भी हम सम्भलने की बजाय अनिवार्य या अपरिहार्य मानकर ढोए जा रहे हैं और अपनी संतानों को भी उसी कुएं में अपने हाथों से धकेलने में आनन्द का अनुभव कर रहे हैं I

समय की कमी के चलते, माइक्रोवेव ओवन (आविष्कार – सन 1967) आज  हमारे आधुनिक समाज में रसोईघर का एक अनिवार्य अंग बन चुका है I जल्दी से खाना गर्म करना हो, सब्जियां पकाना हो, केक या पिज्जा बनाना हो, यानी चपाती को छोड़ दिया जाए तो अनेक व्यंजन माइक्रोवेव ओवन की मदद से फटाफट बनाने का चलन तेजी से व्यापक हो गया है I उसकी त्वरित ऊर्जा ने कस्बों, शहरों और महानगरों के परिवारों को अपना कायल बना लिया है I

माइक्रोवेव ओवन किस तरह काम करता है ?

माइक्रोवेव्स, विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा की बहुत छोटी वेव्स हैं, जो प्रकाश की गति यानी 186,282 मील प्रति सेकण्ड की गति से यात्रा करती हैं I हरेक माइक्रोवेव ओवन में एक मैग्नेट्रान नामक एक ट्यूब होती है, जिसके चुम्बकीय और विद्युत क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन्स कुछ इसतरह प्रभावित होते हैं कि उससे 2450 मेगा हर्ट्ज़ (2.45 बिलियन हर्ट्ज़) की माइक्रो वेवलेग्न्थ का विकिरण (रेडिएशन) उत्पन्न होता है, जबकि 10 हर्ट्ज़ की ऊर्जा मनुष्य शरीर को नुक्सान पहुंचाने में सक्षम होती है I (शेष भाग अंत में) I सरल भाषा में कहें तो माइक्रोवेव ओवन से विद्युत् चुम्बकीय विकिरण (electromagnetic radiation) निकलता है I यू.एस.डिपार्टमेंट ऑफ़ एग्रीकल्चर के अनुसार शार्ट रेडियो वेव्स भोज्य पदार्थ के भीतर मौजूद पानी को एकदम से कम्पित करती है, जिससे उष्मा निकलती है, जो भोजन को पकाती हैं I

यह ऊर्जा (विकिरण) ओवन में रखे खाद्य पदार्थों के अणुओं से क्रिया करती है I यह ऊर्जा प्रत्येक चक्र में खाद्य पदार्थों के अणुओं की ध्रुवीयता (पोलेरिटी) को पॉजिटिव से नेगेटिव में लाखों बार बदल देती है I यह वैज्ञानिक तथ्य है कि हर खाद्य पदार्थ में पानी की काफी मात्रा होती है और पानी के अणुओं में भी चुम्बक की तरह दो ध्रुव होते हैं, सकारात्मक एवं नकारात्मक I उक्त ध्रुवीय परिवर्तन पानी के अणुओं में भी होता है I बाजारों में उपलब्ध 1000 वाट्स के A.C. करेंट के माइक्रोवेव ओवन के मैग्नेट्रान की ऊर्जा से खाद्य पदार्थों के अणुओं में प्रति सेकण्ड लाखों बार ध्रुवीय परिवर्तन होता रहता है I इसके कारण घर्षण होता है और ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिससे भोजन गर्म होता है, अर्थात् माइक्रोवेव ओवन में खाद्य पदार्थ के भीतर से निकली गर्मी ही उसे गर्म करती है I यह महाघर्षण आसपास के अणुओं को भी विघटित और विद्रूप कर देता है, जिसे विज्ञान की भाषा में “स्ट्रक्चरल आइसोमेरिज्म” कहा जाता है I

माइक्रोवेव ओवन का विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र (EMF)

माइक्रोवेव ओवन से निकलने वाले विद्युत् क्षेत्र से तो बचाने के सार्थक उपाय उपकरण में सम्भव हो सकते हैं परन्तु चुम्बकीय क्षेत्र ओवन के दरवाजे से निकलकर सीमेंट – कांक्रीट, स्टील की दीवार और मानव शरीर में प्रवेश करने में सक्षम होता है I विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र को मापने की ईकाई को मिलीगॉस (milliGauss, mG) कहते हैं I एक मिलीगॉस एक गॉस का हजारवां हिस्सा होता है I एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ई.पी.ए.) ने 0.5 मिलीगॉस से 2.5 मिलीगॉस तक के विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र को सुरक्षित माना है I वैज्ञानिकों के अनुसार माइक्रोवेव ओवन से निकलने वाले विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र का माप 3 फीट तक की दूरी तक 1 से 25 मिलीगॉस तक होता है तथा यदि आपकी अपने ओवन से दूरी 4 इंच की हो तो यह बढ़कर 100 से 500 मिलीगॉस तक हो जाता है I अध्ययनों के अनुसार 2 मिलीगॉस का विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र शरीर में जैव तनाव (बायोलॉजिकल स्ट्रेस) उत्पन्न करना शुरू कर देता है, 2 से 12 मिलीगॉस का विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र कैंसरकारी तथा रोग प्रतिरोधक तंत्र को प्रभावित करने लगता है I 12 से अधिक मिलीगॉस का विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र नींद, मूड और समूचे स्वास्थ्य के लिए जरूरी मेलेटोनिन नामक हॉर्मोन को कम कर देता है I

चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मानव शरीर की प्रकृति इलेक्ट्रोकेमिकल है I रोबर्ट ओ बेकर की पुस्तक “द बॉडी इलेक्ट्रिक’ और एलेन सुगरमन की पुस्तक “वार्निंग द इलेक्ट्रिसिटी अराउंड यू मे बी हेजार्डस टू योर हेल्थ” के अनुसार जो भी मशीन या वातावरण मानव शरीर की प्राकृतिक विद्युतरासायनिक संरचना में व्यवधान डालते हैं, वे मानव शरीर की कार्य प्रणाली (फिजियोलॉजी) को प्रभावित करते हैं I डॉ.लिटा ली ने अपनी पुस्तक “हेल्थ इफेक्ट्स ऑफ़ माइक्रोवेव रेडिएशन – माइक्रोवेव ओवन्स” तथा अर्थलेटर के सितम्बर 1991 के अंक में लिखा है कि “हरेक माइक्रोवेव ओवन से विद्युत् चुम्बकीय विकिरण लीक होता है जो खाद्य पदार्थों को नुक्सान पहुंचाती है और पकाए गए पदार्थ को मानव अंगों के लिए घातक बना देती हैं तथा उनमें कैंसरकारक उत्पाद उत्पन्न हो जाते हैं I”

 माइक्रोवेव ओवन में तैयार खाद्य पदार्थ के मानव शरीर पर प्रभाव

वैज्ञानिकों के अनुसार माइक्रोवेव ओवन की ऊर्जा रूपी विकिरण किरणें खाद्य पदार्थों के भीतर के रासायनिक और आणविक बन्धन को तोड़ डालती हैं और उनकी मौलिक जीवनीय (बायोलॉजिकल) और जैवरासायनिक (बायोकैमिकल) संरचना को बिगाड़ देती हैं I निश्चितरूप से ऐसे खाद्य पदार्थ शरीर की सामान्य स्थूल और सूक्ष्म गतिविधियों को प्रभावित करते हैं I आकस्मिक रूप से अत्यधिक ऊर्जा के सम्पर्क में आने से खाद्य पदार्थों में होने वाले आणविक आन्दोलन से जो विघटन और विनाशकारी प्रभाव होते हैं, उन पर अनेक वैज्ञानिकों ने शोध किए हैं I रूस ने वैज्ञानिक शोधों के निष्कर्ष में पाए गए स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभावों के चलते 1976 में माइक्रोवेव ओवन पर pic1प्रतिबन्ध लगाया था, हालांकि इसे सोवियत यूनियन के समाप्त होते ही 1990 के दशक में हटा दिया गया I माइक्रोवेव ओवन में तैयार या गर्म किए गए खाद्य मानव शरीर पर जो प्रभाव डालते हैं, वे चौंकाने वाले हैं I

  • शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि माइक्रोवेव में पकाए या गर्म किए गए भोजन पदार्थ के स्वास्थ्यवर्द्धक गुण अत्यधिक कम हो जाते हैं I माइक्रोवेव ओवन में खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता 60 से 90% तक कम हो जाती है और भोजन का संरचनात्मक विघटन तेज हो जाता है I
  • व्यक्ति की बैक्टीरिया और विषाणुओं जनित रोगों से लड़ने की शक्ति का क्षीण हो जाती है I
  • मोतियाबिंद हो जाता है I चूंकि नेत्रों के कार्निया में रक्त वाहिनियां नहीं होती हैं, अत: तापमान नियन्त्रित करने की क्षमता नहीं होती है, इसलिए कार्निया की कोशिकाएं तापमान तथा अन्य तनावों को वहन नहीं कर पाता है I सन 1950 में हिर्श और पारकर ने माइक्रोवेव ओवन से होने वाला पहला मोतियाबिन्द का प्रकरण खोजा था I उसके पश्चात अन्य उपकरणों से निकले इसीतरह के विकिरण से होने वाले मोतियाबिन्द के प्रकरण अन्यों ने भी देखें I
  • जन्मजात शारीरिक विकलांगता तथा अन्य गम्भीर बीमारियां हो सकती हैं I
  • माइक्रोवेव की किरणें दूध और दालों में कैंसरकारक एजेंट्स की रचना करती हैं I
  • माइक्रोवेव किए गए खाद्य पदार्थों के उपयोग से व्यक्ति के रक्त में कैन्सरस कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है I
  • माइक्रोवेव की किरणें खाद्य पदार्थों में ऐसे परिवर्तन कर देती हैं, जिसके कारण पाचन सम्बन्धी विकार हो जाते हैं I
  • माइक्रोवेव किए गए खाद्य पदार्थ में हुए रासायनिक परिवर्तनों के कारण मानव शरीर का लिम्फेटिक सिस्टम का कार्य कमजोर पड़ जाता है, परिणामस्वरूप कैंसर की वृद्धि को रोकने में सक्षम शरीर की क्षमता प्रभावित होती है I
  • माइक्रोवेव ओवन में अत्यन्त कम समय में ही कच्चे, पकाए हुए अथवा फ्रीज की हुई सब्जियों के मौलिक तत्व टूट जाते हैं और फ्री रेडिकल्स बन जाते हैं I परिणामत: कोशिकाओं की बाहरी दीवार कमजोर हो जाती है, त्वचा में झुर्रियां और शरीर में वृद्धता (बुढ़ापा) जल्दी आती है और त्वचा-कैंसर भी सम्भव है I माइक्रोवेव किए गए खाद्य पदार्थों के उपयोग से व्यक्ति में पेट और आँतों में कैंसरस वृद्धि हो सकती है I अमेरिका में कोलन कैंसर की तीव्र गति से बढ़ी हुई दर के लिए वैज्ञानिक माइक्रोवेव ओवन को दोषी मानते हैं I
  • माइक्रोवेव किए गए खाद्य पदार्थों के उपयोग से विटामिन बी, सी, इ, एवं आवश्यक खनिज और लाइपोट्रापिक्स को उपयोग करने की शरीर की क्षमता कम हो जाती है I
  • माइक्रोवेव में गर्म किए गए मांस के व्यंजन में डी-नाइट्रोसोडीइथेनोलामाइन नामक कैंसरकारी रसायन उत्पन्न होता है I
  • यदि माइक्रोवेव ओवन में पकाए भोजन को रोज खाया जाए तो वह मस्तिष्क के उत्तकों में दीर्घावधि और स्थायी नुक्सान हो जाता है I
  • माइक्रोवेव ओवन में पकाए गए भोजन के अनजाने उत्पादों की चयापचय (मेटाबोलिज्म) क्रिया करना मानव शरीर के लिए सम्भव नहीं होता है और वे विजातीय पदार्थ शरीर में एकत्रित होते रहते हैं I
  • यदि माइक्रोवेव ओवन में पकाए भोजन को रोज खाया जाए तो स्त्री और पुरुषों के हारमोंस का निर्माण प्रभावित होता है I
  • माइक्रोवेव ओवन में पकाई गई सब्जियों में विद्यमान खनिज कैंसरकारी फ्री रेडिकल्स में परिवर्तित हो जाते हैं I
  • यदि माइक्रोवेव ओवन में पकाए भोजन को रोज खाया जाए तो व्यक्ति की स्मरणशक्ति, बौद्धिक क्षमता और एकाग्रता कमजोर हो जाती है तथा भावनात्मक अस्थिरता हो जाती है I
  • कई देशों में माता के दूध को फ्रीज में सुरक्षित रखा जाता है और जरूरत पड़ने पर पिलाने से पूर्व उसे गर्म किया जाता है, पीडियाट्रिक शोध (Pediatrics,vol. 89, no. 4, April 1992) में ज्ञात हुआ कि दूध को माइक्रोवेव ओवन में गर्म करने पर लाइसोजाइम नामक अत्यन्त महत्वपूर्ण रोगाणुनाशक एंजाइम की सक्रियता कम हो जाती है, एंटीबाडीज कम हो जाती हैं तथा घातक बैक्टीरिया बढ़ जाते हैं I दूध को 72 डिग्री तक गर्म करने पर 96% इम्यूनोग्लोबुलिन ए एंटीबाडीज नष्ट हो जाती हैं, जो शरीर में प्रवेश करने वाले सूक्ष्म जीवाणु से लड़ते हैं I
  • लेंसेट के एक अन्य शोध के अनुसार शिशु के भोजन को दस मिनट तक माइक्रोवेव करने पर उसमें मौजूद एमिनो एसिड्स की संरचना बदल जाती है, सम्भवत: उनमें क्रियागत, संरचनात्मक तथा रोग प्रतिरोधक असामान्यता आ जाती है I
  • जर्नल ऑफ़ द साइंस ऑफ़ फ़ूड एंड एग्रीकल्चर के 2003 के अंक में प्रकाशित “स्पेनिश साइंटिफिक रिसर्च कौंसिल” के शोधार्थियों द्वारा सम्पन्न अध्ययन की सह लेखिका डॉ. क्रिस्टीना गार्सिया – विगुएरा के अनुसार माइक्रोवेव में पकाई गई सब्जियों की पौष्टिकता कम हो जाती है I ब्रोकली नामक सब्जी पर किए अपने अध्ययन में पाया कि ब्रोकली में मौजूद तीन प्रमुख कैंसररोधी एन्टीआक्सीडेंट्स क्रमशः 97%, 74% और 87% कम हो गए थे, जबकि परम्परागत तरीके से पकाई गई ब्रोकली में ये कैंसररोधी एन्टीआक्सीडेंट्स केवल 11%, 0% और 8% नष्ट हुए I
  • जापान में वातानाबे द्वारा सम्पन्न एक शोध में पाया कि दूध को 6 मिनट तक माइक्रोवेव ओवन में गर्म करने से उसमें मौजूद विटामिन B12 30 से 40% तक निष्क्रिय हो गया I

 माइक्रोवेव ओवन से सम्बन्धित कुछ विशिष्ट और उल्लेखनीय घटनाक्रम 

स्वीटजरलैंड के फ़ूड वैज्ञानिक डॉ. हंस हेर्टेल और उनके साथी डॉ. ब्लंक (Hans Hertel & Blanc) ने 1989 में पहली बार माइक्रोवेव ओवन के खतरों के विषय में प्रामाणिकता और पारदर्शिता के साथ अध्ययन किया था I शोध में सम्मिलित सभी प्रतिभागियों के रक्त के परीक्षण से पता चला है कि ओवन में खाना पकाने से भोजन के पौष्टिक तत्व कमतर हो जाते हैं I माइक्रोवेव ओवन के विकिरण खाद्य पदार्थों की मौलिक रासायनिक संरचना को बिगाड़ कर उसे नष्ट कर देते हैं तथा नए किन्तु खतरनाक और हानिकारक रेडियोलायटिक रसायन बन जाते हैं I जिनके कारण रक्त की रासायनिक संरचना प्रभावित होती है I उन्होंने पाया कि अच्छा कोलेस्ट्रॉल (HDL) कम और ख़राब कोलेस्ट्रॉल (LDL) तेजी से बढ़ता है, हीमोग्लोबिन और श्वेत रक्त कोशिकाएं उल्लेखनीय रूप से कम हो जाते हैं I डॉ. हेर्टेल और डॉ.ब्लंक के निष्कर्ष प्रकाशित होते ही “स्विस एसोसिएशन ऑफ़ डीलर्स फॉर इलेक्ट्रोएपरेटसेस फॉर हाउस होल्ड्स एंड इंडस्ट्री” नामक शक्तिशाली ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन ने शोध निष्कर्ष को सार्वजनिक करने से रोकने के लिए कोर्ट में अपील की I न्यायालय में कई स्तर पर जानबूझकर देरी की गई और अन्तत: डॉ. हेर्टेल और डॉ.ब्लंक को वाणिज्य में व्यवधान डालने की (“interfering with commerce”) सजा के रूप में मार्च 1993 में मुंह बन्द रखने (गैग ऑर्डर) के आदेश देते हुए कहा कि वे अपने शोध निष्कर्षों को आगे से प्रकाशित नहीं करें I डॉ. हेर्टेल ने घोषणा भी की कि उन्हें चुप रहने के लिए विवश नहीं किया जा सकता है I फिर उन्होंने जोरदार तरीके से अपील की कि न्याय प्रक्रिया निष्पक्ष हो और सत्य को सुना जाए, जानबूझकर देरी की गई और उन्हें मीडिया से दूर रखा गया I वे वर्षों तक अधिकार की लड़ाई लड़ते रहे I अन्तत: 25 अगस्त 1998 को “द यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ ह्यूमन राइट्स” स्ट्रासबॉर्ग, आस्ट्रिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन मानते हुए “गैग आर्डर” को रद्द किया और स्विट्ज़रलैंड को आदेश दिया कि वह डॉ.हेर्टेल को हर्जाना भी दें I

नॉरमा लेविट नामक महिला के कूल्हे के जोड़ की शल्यचिकित्सा (हिप जॉइंट सर्जरी) हिलक्रेस्ट मेडिकल सेंटर, ओक्लाहोमा में 1998 में हुई थी और उन्हें रक्त चढ़ाया जाना था, नर्स ने फ्रीज से निकाले गए रक्त को माइक्रोवेव ओवन में गर्म करवाया और रक्त चढ़ाते ही उस महिला की मृत्यु हो गई I उसके परिजनों ने न्यायालय की शरण ली I वे चाहते थे कि लोगों को माइक्रोवेव ओवन की वास्तविकता का पता चले I फरियादी के वकील का तर्क था कि माइक्रोवेव ओवन में गर्म किए जाने से रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाने से रक्त टॉक्सिक हो गया था I लम्बी बहस चली परन्तु न्यायालय ने प्रकरण को निराधार माना और आटोप्सी रिपोर्ट में पाया बताया गया कि यह दुर्घटना मृत्यु थी, जो हिमोलाइज्ड ब्लड (ऐसा रक्त जिसकी लाल कोशिकाएं टूट – फूट गई हों) चढ़ाने के दुष्प्रभाव के कारण हुई I कोर्ट में यह बात भी सामने आई कि नर्स ने एक तकनीशियन को स्टाफ कॉफ़ी रूम में रक्त को माइक्रोवेव ओवन में चार मिनट के लिए गर्म करने और तीन बार पलटाने के निर्देश दिए थे I एक अन्य जांचकर्ता राल्फा लजारा ने कहा कि रक्त में पोटेशियम की इतनी कम मात्रा थी, जो किसी को भी मार सकती है परन्तु पोटेशियम की इतनी ज्यादा भी कमी नहीं थी कि उससे दिल काम करना बंद कर दें I डॉ. बोयड शूक (Boyd Shook) नामक जांचकर्ता ने पाया कि शल्य चिकित्सा के कारण रक्त में जो थक्के (क्लाट) निकले थे, उनके कारण फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया था, सम्भवत: इसीलिए नॉरमा की मौत हुई I यह भी गौरतलब है कि हॉस्पिटल ने यह स्पष्ट निर्देश जारी किए कि भविष्य में माइक्रोवेव ओवन को केवल खाना गर्म करने के उपयोग में ही लिया जाए I यह संयोग ही है कि न्याय व्यवस्था से जुड़े या आरोपियों ने निर्दोष ठहराने के लिए माइक्रोवेव ओवन में गर्म किया रक्त चढ़ाने का प्रयोग किसी जानवर पर भी नहीं दोहराया गया I

माइक्रोवेव ओवन में गर्म किए पानी का पौधों पर विनाशक प्रभाव

ब्रिटेन की ससेक्स शहर के अरिएल्ले रेनोल्ड्स सेकेंडरी स्कूल की 17 वर्ष की एक लड़की ने अपने स्कूल के विज्ञान मेले में एक अनूठे प्रयोग का प्रदर्शन कर पूरे विश्व को माइक्रोवेव ओवन के घातक प्रभावों की तरफ अचानक आकर्षित कर डाला था I उसने एक ही प्रजाति और उम्र के दो पौधें लिए I एक को उसने परम्परागत तरीके से उबाल कर ठण्डे किए पानी से सींचा जबकि दूसरे को माइक्रोवेव ओवन में उबालकर ठण्डे किए पानी से सींचा I धीरे-धीरे दूसरा पौधा मुरझाने लगा और पहला पौधा स्वस्थ रहते हुए बढ़ता रहा I नवें दिन माइक्रोवेव ओवन के पानी से सींचा पौधा पूरी तरह मुरझा गया I इस प्रयोग को दूसरे बच्चों ने भी दुहराया और समान प्रभाव देखा I माइक्रोवेव ओवन के पक्षधर लोगों का अनूठा और बहुत ही मासूम – सा तर्क था कि उस लड़की के मन में यह प्रबल विचार था कि दूसरे वाले पौधे पर विपरीत प्रभाव पड़े, इसलिए वह मन की शक्ति से मर गया I ऐसे तर्क देने वालों को अपने मन की शक्ति का उपयोग कर सादे पानी से सींचकर किसी पौधे को मर जाने के लिए विवश करके दिखाना था I

ऐसा नैतिक साहस किसी ने नहीं किया I यह भी कहा गया कि वह विज्ञान मेला छठी ग्रेड का (निम्न स्तरीय) था और ऐसे प्रयोग के आधार पर माइक्रोवेव ओवन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता I यह भी तर्क दिया गया कि माइक्रोवेव ओवन में प्लास्टिक की बोतल में पानी गर्म करने से (उससे निकले घातक रसायनों से) ऐसा हुआ होगा I बहरहाल, सुधि पाठक उन विद्यार्थियों द्वारा किए गए इस प्रयोग को दुहरा सकते हैं I

अस्तु, यह बात सच है कि आप स्वतन्त्र हैं क्योंकि परमात्मा के द्वारा दिए गए आपके शरीर के आप स्वयं स्वामी हैं I परन्तु उक्त तमाम तथ्यों को देखते हुए अंधानुकरण की बजाय विज्ञान की कसौटी पर ठोक बजाकर और आश्वस्त होकर ही किसी नई परम्परा को अपनाएं I एक बात जरूर ध्यान रखिएगा कि भारत की विज्ञान परम्परा विश्व के समस्त देशों की तुलना में बहुत ज्यादा उन्नत और पुरातन रही है I अपनी परम्पराओं पर विश्वास कीजिए और सुखी, संतुष्ट, समृद्ध तथा स्वस्थ रहिए I समय की तथाकथित कमी के फेर से बचें और अपने लाड़ले बच्चों और प्रियजनों को धीमी आंच पर पकाया स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्द्धक और पौष्टिक भोजन प्रेम के साथ खिलाइए I जहां तक भोजन ग्रहण करने का प्रश्न है, आयुर्वेद में भोजन को ग्रहण से पूर्व हाथ-पैर-मुंह धोकर, आसन पर बैठकर, परिजनों के साथ, शान्ति से, प्रसन्नमना होकर, ध्यान और प्रार्थनापूर्वक मंत्रोच्चार किए जाने की परम्परा रही है I यह भी कहा गया है कि भोजनकक्ष साफ, स्वच्छ, प्रकाशमान और हवादार हो तथा बनाने तथा परोसने वाले की मन:स्थिति प्रसन्नतापूर्ण हो I जबकि हमने इस महत्वपूर्ण चर्या को समय की कमी के बहाने वाहन में पेट्रोल डालने जैसा निपटाऊ बना डाला है I

इस प्रस्तुति को लिखने का कारण

एम.बी.बी.एस. के पहले साल में ही हमें शिक्षकों ने बताया था कि खाद्य पदार्थों को काट कर धोने, गरम करने अथवा फ्रीज में रखे रखने आदि से उनमें मौजूद विटामिन्स और अन्य सूक्ष्म पौष्टिक तत्व कम होते जाते हैं I जब हमारे घर में माइक्रोवेव ओवन लाने की बात चली तो पता चला कि इसमें खाना चन्द मिनटों में गरम हो जाता है I शिक्षकों द्वारा दिए ज्ञान के चलते माथा ठनका कि यदि किसी खाद्य पदार्थ का तापमान एकदम से उछाल मारेगा तो उसके सूक्ष्म पौष्टिक तत्व इस आकस्मिक विद्युत् चुम्बकीय विकिरण के उष्ण आक्रमण (थर्मल अटैक) को कैसे झेल पाते होंगे ? माइक्रोवेव ओवन खरीदने का निर्णय रद्द किया और उसके विषय में जानकारियां एकत्रित करने का काम शुरू हुआ I उन जानकारियां में से कुछ इस प्रस्तुति में सम्मिलित की हैं I यह सामग्री नेट पर उपलब्ध जानकारियों की अपनी भाषा शैली में प्रस्तुतिभर है, यह प्रस्तुति कबीरदासजी के शब्दों में “ज्यूं की त्यूं धरधीनी चदरिया” की तरह है I