जल
कहीं दो बूंद को तरसता कोई,कहीं यूंही व्यर्थ बहता जल |
प्रलुब्ध हो गए हैं कुछ तो ,कुछ आबद्ध हैं |
कहीं बहता आता आपदा बन, कहीं विलुप्त होता निर्मल जल |
यूंही चलता रहा तो कहाँ संभाल पाएंगे यह अनमोल जल |
जितना चाहिए उतना हो इस्तेमाल ना जाए व्यर्थ यह जल |
तभी तो चिरकाल तक पा सकेंगे यह निर्मल जल |
–– कामनी गुप्ता जम्मू
जल संरक्षण का संदेश देती अच्छी कविता।