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आईना बोलता है

काॅल-ड्रॉप पर सख्त हुई सरकार – दैनिक जागरण 22-07-15

प्रश्न यह है कि सरकारी तंत्र बी एस एन एल, अर्थात, भारत संचार निगम लिमिटेड, यानी डी ओ टी (डिपार्टमेन्ट आॅफ टेलीकॉम) या यूँ समझ लीजिए कि माननीय रविशंकर प्रसाद जी ‘बेचारा’ का क्या होगा, क्योंकि सबसे ज़्यादा काॅल- ड्राॅप तो इसी सेवा दाता तंत्र (सर्विस प्रोवाइडर) के क्रोशिया (नेटवर्क) पर होती है।

नियमन यह भी है कि काॅल-ड्रॉप के एवज में जुर्माने का प्रावधान है। वो तो हमारे ‘भारत महान’ की ‘अच्छे दिन’ की चिरंजीवी आस में बैठी, मूलभूत सुविधाओं के चतुर्दिश अकाल में भी ‘फील गुड’ करने वाली जनता पे मर मर जावाँ, उसके सदके उठावाँ, कि वो हरजाने के लिये कचहरी का दरवाजा नहीं खटखटाती, वर्ना, पहले से खस्ताहाल बीएसएनएल अब तक जुर्माना भरते भरते दीवालिया हो गया होता ।

इस चिरसंतोषी जनता की विधिक मामलों से दूरी बनाये रखने का कारण जहाँ उसका चिरसंकोच है, वहीं उसका तकनीकी अज्ञान भी सरकारी बाबू की तरह अड़न्गा लगाता है। यह भी सत्य है कि पहले से ही लंबित मुकदमों के बोझ तले त्राहि त्राहि करती न्यायिक व्यवस्था के मद्देनजर, उसे मुआवजा तो दूर, जल्दी तारीख़ मिलने की मी उम्मीद नहीं है। और इस एक शाश्वत तथ्य से, संत्री से लेकर मंत्री तक और चापलूस चपरासी से लेकर बेकाबू बाबू तक, सभी संज्ञानित हैं।

हम तो बस इतना जानना चाहते हैं कि, तमाम घोषणाओं की तरह, इस घोषित सख्ती से सरकार का अभिप्राय क्या है ? मतलब, कि हम इस समाचार से ‘फील गुड’ करें, या ‘अच्छे दिन’ की यथावत प्रतीक्षा करें।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

One thought on “आईना बोलता है

  • विजय कुमार सिंघल

    आपकी बात में दम है।

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