निर्मल हृदय
अपाहिज,दीन-दुखियों को देखकर
दहल जाता जिनका कलेजा,
उस कोमल निर्मल हृदय का
नाम है मदर टरेसा।
बचपन से ही वह ममतामयी
बनना चाहती थी एक नन,
दीन-दुखियों की सेवा में
कर दी अपनी जीवन अर्पण।
युगोस्लाविया की जन्मी वह नारी
हिंदुस्तान आयी बनके माया,
गरिब, लाचार, रोगी, अनाथ को
देती थी ममता की छाया।
नीली कोरी की श्वेत साड़ी
उस माँ की थी पहचान,
नर्स बनके कोलकाता जाकर
‘निर्मल हृदय’ खोला संस्थान।
जो भी होते गरिब, लावारिस
रोगी, अनाथ और लाचार,
स्नेह, सहानुभूति, प्यार से
करती उनकी सेवा उपचार।
शिशु सदन, प्रेमघर और
शांतिनगर वह की स्थापना,
अच्छा लगता था उनको
दीन-दुखियों का सेवा करना।
तभी उस आदर्श नारी को
भारत-रत्न सम्मान मिला,
दुनिया का प्रसिद्ध पुरस्कार
नोबेल का भी इनाम मिला।
-दीपिका कुमारी दीप्ति
सर मुझे तो इस बारे में मालुम नहीं था इसीलिए मैं आजतक इसे एक आदर्श नारी समझती रही। वैसे भी मुझे विदेशियों खासकर अन्य धर्म के लोगों से कोई रुचि नहीं है।
मदर टेरेसा का कलेजा केवल ईसाइयों या ईसाई बन सकने वाले अन्य लोगों के लिए द्रवित होता था। वह सेवा के नाम पर ईसाई धर्म का विस्तार करती थी।