कविता

निर्मल हृदय

अपाहिज,दीन-दुखियों को देखकर
दहल जाता जिनका कलेजा,
उस कोमल निर्मल हृदय का
नाम है मदर टरेसा।

बचपन से ही वह ममतामयी
बनना चाहती थी एक नन,
दीन-दुखियों की सेवा में
कर दी अपनी जीवन अर्पण।

युगोस्लाविया की जन्मी वह नारी
हिंदुस्तान आयी बनके माया,
गरिब, लाचार, रोगी, अनाथ को
देती थी ममता की छाया।

नीली कोरी की श्वेत साड़ी
उस माँ की थी पहचान,
नर्स बनके कोलकाता जाकर
‘निर्मल हृदय’ खोला संस्थान।

जो भी होते गरिब, लावारिस
रोगी, अनाथ और लाचार,
स्नेह, सहानुभूति, प्यार से
करती उनकी सेवा उपचार।

शिशु सदन, प्रेमघर और
शांतिनगर वह की स्थापना,
अच्छा लगता था उनको
दीन-दुखियों का सेवा करना।

तभी उस आदर्श नारी को
भारत-रत्न सम्मान मिला,
दुनिया का प्रसिद्ध पुरस्कार
नोबेल का भी इनाम मिला।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

2 thoughts on “निर्मल हृदय

  • सर मुझे तो इस बारे में मालुम नहीं था इसीलिए मैं आजतक इसे एक आदर्श नारी समझती रही। वैसे भी मुझे विदेशियों खासकर अन्य धर्म के लोगों से कोई रुचि नहीं है।

  • विजय कुमार सिंघल

    मदर टेरेसा का कलेजा केवल ईसाइयों या ईसाई बन सकने वाले अन्य लोगों के लिए द्रवित होता था। वह सेवा के नाम पर ईसाई धर्म का विस्तार करती थी।

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