कहानी : एक किसान की आत्महत्या – भाग 2
आपने पिछले अंक में पढ़ा की करमू ने ठाकुर साहब की 20 बीघा जमीन जो की पथरीली थी उसे बंटाई पर ले ली थी ताकि उसकी बेटी की अच्छी प्रकार से शादी हो सके ।करमू और उसके परिवार वाले कड़ी मेहनत और लगन से पथरीली जमीन को साफ़ करते हैं … अब आगे पढ़िए।
करमू ने एक बार शगुनी की तरफ देखा और फिर चिंता लिए काम पर लग गया । कई दिनों की मेहनत से खेत पूरी तरह जोत लिए गए थे और फसल बोने के लिए एक दम तैयार थे ।
पर समस्या यह थी की करमू के पास इतने बीज नहीं थे और न ही सिंचाई के लिए कोई साधन । बाजार से बीज लाने के लिए कम से कम 10 हजार रूपये और सिचाई के लिए तक़रीबन इतने ही सिंचाई के लिए लगते यदि वह पास की नहर से पाइपो द्वारा पानी लाता है । कुल मिला के उसको अभी 20 हजार की जरूरत थी जिससे वह आगे काम कर पाता ।
उसने अपने सभी जान पहचान वालो और रिस्तेदारो से मांग के देख लिया पर इतनी बड़ी रकम देने में सभी ने असमर्थता जाता दी । इसी चिंता के कारण उसे दो दिनों से ठीक से नींद नहीं आ रही थी । शगुनी ने जब करमू को चिंतित देखा तो उसने कारण जानना चाहा, पूछने पर करमू ने सब बता दिया ।
‘ एक बात बोलूं तरवा के बाबा ? तुम बुरा मत मानना ” शगुनी ने थोडा झिझकते हुए पूछा
” क्या ? बोल’ करमू ने आँखे बंद किये बोला
” क्यों न आप मेरे गहने बेंच दो? इतने पैसे तो हो ही जायेंगे” शगुनी ने जबाब दिया
” गहने कैसे बेच दूँ? वह गहने तूने तरवा की शादी के लिए रखे हुए हैं , और फिर बस वही तो ले देके एक पूंजी बची हुई है हमारे पास ” करमू ने अब और चिंतित स्वर में कहा
“जानती हूँ,कितने दुःख उठाने के बाद हमने वह गहने नहीं बेचे , पर खेत में अच्छी फसल होगी तो उसे बेच के फिर दुबारा बनवा लेंगे ‘ शगुनी ने कहा
‘ हम्म… चल सो जा सुबह सोचता हूँ ‘ करमू ने कहा
सुबह करमू जब अपने नित्यकर्म से फारिग होके खेतो की तरह जाने को तैयार हुआ तो शगुनी ने कपडे में की पोटली उसके हाथ में थमा दी , करमू ने लाचारी से एक नजर कपडे में लिपटे घर की आखरी पूंजी की तरफ देखा और फिर चूल्हे पर रोटी बनाती तारा को । उसकी आँखों से आँसुओ की एक पतली धार निकल आई । वह बिना कुछ कहे पोटली जेब में रखता हुआ तेजी से बाहर की तरफ निकल गया ।
कस्बे में पहुँच करमू ने गहने सुनार को बेंच दिए , कुल रकम मिली 23000 हजार । करमू लगे हाथ 9 हजार गेंहू की फसल के बीज ले आया बाकि सिंचाई , खाद आदि में खर्च हो गए ।
फिर वह दिन भी आ गया जब फसल पाक के तैयार हो गई , करमू और उसके परिवार की मेहनत रंग लाइ थी । इतनी अच्छी फसल गाँव में किसी की नहीं हुई थी , सब लोग करमू की सरहना करते नहीं थकते थे । ठाकुर ने भी जब फसल देखी तो आस्चर्य से उसकी आँखे फ़ैल गई , उसने सोचा भी न था की उस बंजर भूमि पर इतनी अच्छी फसल तैयार हो सकती है ।
करमू ने फसल कटवा ली और कुछ हिस्सा अपने साल भर के खाने और बीज के लिए रख लिया बाकी फसल को ट्रेक्टर ट्रॉली में लदवा के कस्बे के सरकारी अनाज मंडी में बेचने ले गया ।
” राम राम मुनीम जी” करमू ने सरकारी मुनीम के पास जाके अविवादन किया
“राम राम ….कहो” मुनीम ने पान की पीक एक तरफ निकालते हुए कहा
” जी , मुनीम जी आनाज लाये हैं बेचने वास्ते ” करमू ने हाथ जोड़ के कहा
” ठीक है , जाओ कांटा करवा लाओ ‘ मुनीम ने करमू से कहा
करमू गौदाम में मौजूद सरकारी कांटे अपना आनाज तौलवाने चल दिया , थोड़ी देर में वह अनाज के तौल की रसीद ले आया और मुनीम को देता हुआ बोला ।
‘ लीजिये मुनीम जी , वजन करवा लाया ‘
‘ हम्म…दिखा’ मुनीम ने पर्ची ले लिया
‘ अनाज की बोरियां वंहा रख दे ‘ मुनीम ने एक खुली जगह पर इशारा करते हुए कहा ।
जंहा अनाज रखने को मुनीम ने कहा था वंहा पहले से ही सैकड़ो बोरियो का ढेर लगा हुआ था सब की सब खुली जगह पर पड़ी हुई थी । एक जगह दूसरा ढेर पड़ा था अनाजो का , मक्का, जौ, अरहर , चने , चावल न जाने कौन कौन से अनाज को बोरियों का अम्बार लगा हुआ था । उसमें से अधिकतर बोरियों में फफूंदी लग गई थी और सड़ना शुरू हो गया था । इतने सारे आनाज को इस हालात में देख करमू को आस्चर्य हुआ पर वह कुछ न बोला और चुपचाप अपना आनाज पहले से पड़ी बोरियो में रख वापस मुनीम के पास आ गया ।
“कुछ नजराना लाया है ? ” मुनीम ने सीधा सीधा प्रश्न किया
“जी मुनीम साहब मैं समझा नहीं ‘ करमू ने अनभिज्ञता जाहिर की
” अबे , पगला है का’ मुनीम ने फिर पान की पीक करते हुए करमू को झिड़कते हुए कहा
” यंहा जल्दी काम करवाने के लिए साहब को नजराना देना होता है , लगता है पहली बार सरकारी मंडी में माल बेचने आया है ‘ मुनीम ने करमू को समझाते हुए कहा
“जी साहब पहली बार गल्ला बेचने आयें है, हमें नहीं पता यहाँ का कानून’ करमू ने अँगोछे से पसीना पोछते हुए कहा
” ठीक है ! अब तो पता चल गया न.. निकाल 5 हजार रूपये ‘ मुनीम ने दो टूक शब्दों में कहा
” पांच हजार….. साहब इतना पैसा तो नहीं है मेरे पास “करमू लगभग रुआंसा होके बोला
” क्या पैसा नहीं है ?? अबे लाखो का गल्ला बेच रहा है और 5 हजार रुपल्ली नहीं दे सकता ” अब मुनीम को गुस्सा आ गया
” सच में साहब , मेरे पास पैसा नहीं है ” करमू ने रुआंसे शब्दों में कहा
” ठीक है कोई बात नहीं , ये ले पर्ची और जा’ मुनीम ने कच्ची रसीद बनाते हुए कहा
“साहब , पक्की रसीद दीजिये न ‘ करमू ने कच्ची रसीद को हाथ में पकड़ते हुए कहा
” बेटा पक्की रसीद तो तभी मिलेगी जब साहब को 5 हजार रूपये पहुँच जायेंगे .. अब चल जा यंहा से ‘ मुनीम ने करमू को झिड़कते हुए कहा ।
करमू अनमने ढंग से और बोझिल कदमो से आगे बढ़ गया ।
करमू अभी गेट से निकला ही था की एक सफ़ेद चमचमाती कार गोदाम में दाखिल हुई , मुनीम के पास जैसे ही कार रुकी मुनीम एक दम से हाथ जोड़ के खड़ा हो गया।
‘ चन्दर बाबू आप !! आइये आइये मालिक साहब ‘ मुनीम ने हाथ जोड़े जोड़े कहा
‘ साहब हैं क्या?” चन्दर ने पूछा
‘ जी , साहब अपने केबिन में हैं … चलिए ‘ मुनीम इतना कह आगे आगे चलने लगा
साहब के केबिन में दोनों प्रवेश कर गए , साहब ने चन्दर को देखा तो अपनी कुर्सी से खड़ा होके हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे कर दिया ।
अभिवादन की औपचारिता पूरी होने के बाद काम की बाते शुरू हो गई
” साहब जी , हमारे सर जी ने कहा है की इस बार पिछली साल की तरह नहीं होना चाहिए , कम आनाज मिलने के कारण हमारा नुकसान हो गया था ‘ चन्दर ने कहा
‘ अरे , फ़िक्र मत करो … अपने सर जी से बोलो की इस बार गल्ला दुगना मिलेगा बस जरा रेट थोडा ऊपर रखना पड़ेगा ‘ इतना कह साहब दांत निकाल के मुस्कुरा दिए ।
‘ बिलकुल मिलेगा साहब जी , आप बस माल दीजिये रेट की चिंता मत कीजिये .. ये लिए एडवांस ‘ इतना कह के चंदर ने अपनी जेब से 1000 के नोटों की 5 गड्डी मेज पर रख दी ।
मुनीम ने झट गड्डियों को उठा अपनी पेंट में खोंस लिया ।
‘ ठीक है साहब चलता हूँ ‘ इतना कह चंदर ने साहब और मुनीम से हाथ मिलाया और तेजी से कैबिन से बाहर निकल गया ।
चन्दर एक बियर बनाने वाली कंपनी का मैनेजर था ।
इधर करमू ने सब हाथ पैर मार लिए पर कंही से उसे पैसा न मिला , यंहा तक की वह ठाकुर के पास भी मदद के लिए गया पर ठाकुर ने कहा की पहले बटाई के पैसे दे फिर नया कर्जा मिलेगा । थक हार के करमू परेशान और दुखी हो घर वापस आया , जब शगुनी को उसकी हालात देखी नहीं गई तो उसने घर में मौजूद पीतल के कुछ बर्तन करमू को दिए जो की उसे अपनी शादी के समय मिले थे , और कहा की उसे बेंच के मुनीम को पैसे दे दे ।
करमू ने लाचारी और बेबसी में बर्तन बेंच दिए और पैसा मुनीम को दे दिया ।
मुनीम ने पक्की रशीद बना के दे दी और एक महीने बाद आने को कहा ।
करमू ने हाथ जोड़ गिड़गिड़ाते हुए मुनीम से कहा ” मुनीम साहब जल्दी से पैसा दिलवा दीजिये हम बहुत परेशान हैं ‘
‘देख भाई करमू , मेरा जो काम था वह मैंने कर दिया अब सरकारी काम में देर तो लगती ही है न तू एक महीने बाद आ’ इतना कह मुनीम ने करमू को जाने के लिए कहा ।
करमू बोझिल मन से वापस आ गया , एक एक दिन उसके लिए भारी हो रहा था .. पूरा महीना उसने चिंता में काटा । एक महीने बाद फिर वह मुनीम के सामने उपस्थित हुआ और पैसे की बात की ।
मुनीम ने बताया की साहब छुट्टियों पर चले गए हैं और एक महीने बाद आएंगे बिना उनके साइन के फ़ाइल आगे नहीं जायेगी ।
जब करमू ने जिद की तो मुनीम ने गुस्से में कहा की ” अबे तूने ही सिर्फ गल्ला नहीं बेचा है सैकड़ो किसानो ने बेचा है , तेरा ही पैसा अकेला थोड़े ही न आएगा सभी का आएगा … कइयों को तो पिछले साल का भुगतान नहीं हुआ है अभी ‘ तुझे तो एक महीना ही हुआ है अभी सिर्फ ”
मुनीम की बात सुन करमू का कालेज बाहर आ गया , उसने सोचा की अपना गल्ला वापस ले ले पर जब उसने जा के अपना गल्ला देखा तो उसकी आँखों से आंसू आ गए .. बोरियां कई जगह से गल के फट चुकी थीं और उसमे से आनाज निकल के बहार आ गया था । आनाज में कूड़ा करकट सब मिल चुका था कुछ सड़ना भी शुरू हो चुका था ।अनाज अब वापस ले जाने के लायक नहीं था ।
मन मार के वह वापस घर आ गया , इधर ठाकुर की दी मियाद पूरी हो गई थी और एक हफ्ता ऊपर हो चुका था । ठाकुर ने अपने कारिंदे भेज दिए थे वसूली के लिए , जो यह धमकी दे गए थे की यदि समय पर पैसा नहीं मिलेगा तो उसकी 4 बीघा जमीन कब्ज़ा ली जायेगी ।
अब करमू की रातो की नींद उड़ चुकी थी , परेशनी का आलम यह था की हमेशा खुश रहने वाला और कठिन परिश्रम करने वाला करमू हमेशा उदास रहता था । शगुनी और तारा उसे देख के आंसू बहाती पर कुछ भी मदद करने में असमर्थ थीं।
किसी तरह से एक महीना और बीत गया , करमू फिर साहब के आफिस पहुंचा और उनसे मिला।
‘ मालिक साहब , हमारा पैसा जल्दी दिला दीजिये हम बहुत दुखी है ‘ इतना कह करमू ने आंसुओ के साथ सारी कहानी साहब को बताई ।
” देख करमू मैं तेरी परेशनी समझता हूँ , पर पैसा देना मेरे हाथ में नहीं है यह सब ऊपर में बैठे लोग करते हैं ‘ साहब ने करमू से कहा
‘ कितना समय और लग जायेगा साहब ? ‘ करमू ने पूछा
‘ डेढ़ -दो महीने में कोशिश करता हूँ .. अब तू जा ‘ साहब ने करमू से कहा जाने को कहा
करमू रोता बिलखता वापस घर आ गया , करमू की बात सुन शगुनी और तारा भी रोने लगी । एक दो पडोसी भी करमू को सांत्वना देने पहुँच गए थे पर सरकारी काम होने के कारण कोई कुछ नहीं कर सकता था । करमू कई नेताओं के चक्कर भी लगाये पर सबने सांत्वना देने के आलावा कोई मदद नहीं की ।
कुछ दिन बीते थे की ठाकुर फिर अपने कारिंदो को लेकेआ धमका और चेतावनी दी की उसके पैसे तुरंत लौटाए जाए नहीं तो उसके चार बीघा खेतो पर उसका कब्ज़ा हो जायेगा।
पर करमू और उसके परिवार के बहुत गिड़गिड़ाने पर उसने दो महीने की मोहलत और दे दी ।
इधर डेढ़ महीने बाद करमू जब फिर से सरकारी मंडी पहुंचा तो देखता है की अनाजो की नीलामी चल रही है और सड़े हुए आनाज कौड़ियो के भाव बेंचे जा रहें है । वही सफ़ेद कार वाला व्यक्ति जिसे करमू ने पहली बार देखा था वह बड़े बड़े ट्रको में सारा सड़ा आनाज लादवा रहा था ।
करमू मुनीम जी से मिला और अपने पैसे के बारे में पूछने लगा , मुनीम ने बताया की साहब अभी व्यस्त हैं और वह अगले हफ्ते आये। इस बार फिर मन मार में करमू को वापस आना पड़ा ।
इधर दो महीने बीतने के बाद ठाकुर एक शाम को करमू के घर आ गया और कहने लगा की कल से उसके चार बीघा खेत ठाकुर के हो गए और जब तक वह पैसे नहीं चुका देता तब तक उसी का कब्जा रहेगा । अगर करमू ने खेत में कदम भी रखा तो उसकी टांग तोड़ दी जायेगी । करमू दुःख और बेबसी के कारण बुत बना सब सुनता रहा , वह सारी रात सोया नहीं बल्कि चहल कदमी करता रहा , शगुनी और तारा उसकी विक्षिप्त सी हालात देख के रोती रहीं।
इस तरह से करमू कभी मुनीम के पास चक्कर लगाता तो कभी साहब के पास अपने पैसो के लिए पर हर बार उसे आश्वाशन दे के भगा दिया जाता की एक हफ्ते में पैसे आएंगे या अगले महीने । इसी प्रकार करमू को चक्कर काटते काटते 8 महीने से ऊपर हो गए थे पर उसको एक पैसा भी नहीं मिला था । घर का आनाज भी ख़त्म हो।चुका था और जो बर्तन अदि थे वे भी धीरे धीरे बिक चुके थे ।
इधर करमू के दिल पर और पहाड़ टूट पड़ा जब अनाज के लिए उसकी पत्नी और बेटी अपने ही खेतो में जो की अब ठाकुर के कब्जे में थे वंहा मजदूरी करने गईं।
उस रात करमू ने कुछ फैसला किया , वह सुबह जल्दी उठ के तैयार हो गया और अपना पीतल का हुक्का एक थैले में बाँध चलने को तैयार हो गया । जब शगुनी ने उससे पूछा की कँहा जा रहे हो तो वह कुछ नहीं बोला और सीधा घर से निकल गया ।
करमू सरकारी मंडी में पहुँच के साहब के केबिन के पास बैठ गया , जैसे ही साहब आये वह फट से उनके पैरो में लोट गया और अपने पैसो को देने की जिद करने लगा । साहब ने तुरंत तीन चार आदमी बुलाये और करमू को अपने से अलग किया ।
उसके बाद साहब ने कहा ‘ देख करमू … सरकार बदल गई है और अभी नई सरकार ने काम संभाला नहीं है 2- 3 महीने और लग जायेंगे पैसे मिलने में ‘
‘ पर साहब मुझे आज पैसे चाहिए हीं… मैं कुछ नहीं जानता’ करमू ने गुस्से से कहा ।
‘ तुझे समझ नहीं आया मैंने क्या कहा?,इसे बहार निकालो’ साहब ने अपने आदमियो से कहा। नौकरो ने करमू को गेट के बाहर फेंक दिया , करमू ने गेट के पास छुपाई हुई केरोसिन के तेल का पीपा निकाला और अपने ऊपर उड़ेल लिया , एक माचिस की तीली और … फक्क.. करमू धूं धूं करके जलने लगा । जिसने भी यह देखा उसके होश उड़ गए , लोग भाग के करमू के पास आये … कोई पानी की बाल्टी ले के आया तो कई मिट्टी डालने लग गया करमू के ऊपर । पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी करमू पूरी तरह से जल चुका था । थोड़ी देर तड़पने के बाद उसने दम तोड़ दिया ।
पुलिस आई और पंचनामा कर के आत्महत्या का केस बना दिया , करमू की मौत की खबर राज्य की मिडिया में आ गई थी । मुख्य मंत्री जी ने अपना कर्तव्य निभाते हुए एक किसान की मौत की राशि 50 हजार उसके परिवार वालो को सौंप दी थी ।
गल्ले के पैसे के मिलने का इन्तेजार आज भी करमू के परिवार वाले कर एक साल बीत जाने के बाद भी कर रहे हैं।
– केशव ( संजय)