कविता

“भूकंप”

दृग दिगंत भूकंप भवन्ती
कदली पात हिलें अवनंती

बरसे बिजली बारीश ओला
कापें घर नर धरा हिलंती ||

हाय मनुज तुम कितने लायक
खुद बन बैठे सर शिर नायक

तनिक उचाट धरी धरती जब
हिले गगन मंह महि-महिपालक ||

करि कसूर पुरुषार्थ पुकारत
जिय मह खोट बिनासे हारत

धरी त्रिनओट रहति वैदेही
तुम काहें निज लंका जारत ||

स्वर्ण हिरन दशमाथ दशानन
ऋषि अगस्त कर श्राप सिखावन

जो जस करहिं सो तसफल चाखा
कलुषित ह्रदय कुटिल मनभावन ||

हाहाकार केहिं कारन भ्राता
पुनि आवत कल्पात निपाता

अब सिख लेहु परम विज्ञानी
नाहीं ते होहिं जनम उतपाता ||

मातु-पिता गुरू धरम सुभाहूँ
आपहि बैर कब होय निबाहूँ

सम समीकरण प्रकृति जगमाहूँ
धरती माँ बिनु जनम की काहूँ ||

भूमंडल अम्बर बिन तारा
जल बिनु जीवन कौने पारा

अधिक बोझ भरि डूबे नैया
वा मझधार भा छिछलि किनारा ||

सदा गगनचर उडत अकाशा
बुझत आपनि पहुँच निकाशा

फिरि आवत अवनी धरि धीरा
संचय करत न तिमिरी प्रकाशा||

बुद्धी विवेक मानुष बलवाना
हरि जाने हरि कृपा निधाना

तापर बैर तिन्हहि संग ठाने
छल-प्रपंच कपटी विधिनाना ||

भई प्रकृति विपरीत विधाना
ममतामयी जीवन कल्याना

हें कपूत माँ कुमाता न भवती
संतुलन हेतु भूकंप रिसाना ||

महातम मिश्र 

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

4 thoughts on ““भूकंप”

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद प्रिय रमेश सिंह जी, आभार

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी चौपाइयां

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय विजय कुमार सिंघल जी

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