लघुकथा : दर्द
सुनीता के फोन रिसीव करते ही उसकी सहेली नेहा की शिकायती आवाज सुनाई दी,”क्या सूमी!कहाँ थी यार?कितनी बार कॉल किया,अब जाकर अटेँड किया तूने।”
सुनीता ने हँसकर कहा, “नहीं नेहा,मैं थोड़ा खाना बना रही थी इसलिए थोड़ी देर हो गई।”
नेहा आश्चर्य से बोली,”क्या क्या क्या..अब तू सिक्टी प्लस में भी खाना बना रही है? तेरी बहू और लड़के कहाँ हैं?”
सुनीता ने बताया कि उसकी बहू-लड़के नौकरी कर रहे हैं उन्हें इतनी फुर्सत कहाँ मिलती है इसलिए धीरे-धीरे भोजन बनाकर अपना पेट भरती हूँ और कभी-कभी भोजन जल जाने पर दूध-ब्रेड खाकर दिन गुजार देती हूँ।
नेहा ने बताया- “मैं भी इसी दर्द को झेल रही हूँ। अथक परिश्रम का क्या यही फल है?”सुनीता की आँखें गीली हो गईं।
— पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’