कविता

कारगिल फतह

नाज तो सदा ही रहा
अपने देश के जवानों पर
जो मर मिटते है हर घङी
करते फक्र बलिदानों पर
आज नमन मेरा उनके
घर और परिवार को
जो भेजते सीमा पर अपने
जिगर के टुकङे लाल को
हम सुरक्षित है यहां पर
उनकी चौकसी शान से
जो रहते सीमा पर हरदम
अपने ही अभिमान से
शत् शत् नमन कारगिल फतह को
जिसने रचा एक इतिहास
आज भी गर्वित होता भारत
बढा है और इक विश्वास

— एकता सारदा

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने [email protected]

One thought on “कारगिल फतह

  • विजय कुमार सिंघल

    बेहतर सामयिक कविता

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