कुण्डली/छंद

कुण्डलिया

(1)
अमुआ तेरे बाग़ में, खुशियों की बौछार,
झूला डाले डार पर, उमड़ रहा है प्यार |
उमड़ रहा है प्यार, झूलने सखियाँ आती
बारिश की बौछार, सभी का तन महकाती
कह लक्ष्मण कविराय,हवा जब बहती पछुआ
झूला देते डाल, डार पर तेरी अमुआ |

(2)
झूला झूले सब सखी, कर सोलह शृंगार,
पावस ऋतु में देखते, तीजों के त्यौहार
तीजो के त्यौहार, सुहागिन सभी मनाती
कुदरत भी माहौल, सदा खुशनुमा बनाती
कह लक्ष्मण कविराय, कष्ट को मानव भूला,
करे प्रकृति से प्यार, तभी खुशियों का झूला |

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- [email protected] पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)

One thought on “कुण्डलिया

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार कुण्डलियाँ, मान्यवर !

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