कुण्डलिया
(1)
अमुआ तेरे बाग़ में, खुशियों की बौछार,
झूला डाले डार पर, उमड़ रहा है प्यार |
उमड़ रहा है प्यार, झूलने सखियाँ आती
बारिश की बौछार, सभी का तन महकाती
कह लक्ष्मण कविराय,हवा जब बहती पछुआ
झूला देते डाल, डार पर तेरी अमुआ |
(2)
झूला झूले सब सखी, कर सोलह शृंगार,
पावस ऋतु में देखते, तीजों के त्यौहार
तीजो के त्यौहार, सुहागिन सभी मनाती
कुदरत भी माहौल, सदा खुशनुमा बनाती
कह लक्ष्मण कविराय, कष्ट को मानव भूला,
करे प्रकृति से प्यार, तभी खुशियों का झूला |
बहुत शानदार कुण्डलियाँ, मान्यवर !