गीत/नवगीत

गीतिका=अमृत की नवधार

माँ तेरे चरणों मे बहती अमृत की नवधार है,
माँ तेरी छाया अलौकिक ममता बड़ी अपार है/1
राज खोजत नित धरा पे माँ तेरा सानी नही ,
माँ हर गली खुशहाल करती प्रेम की आधार है/2
अनुराग की अनुपम छटा देखना हो गर जिसे
देख ले आँखों मे माँ के ममता करती विहार है/3
गर नहीं खुलती है आँखें सीख ले वे श्वान से,
नित सजग प्रहरी बना स्वामि हिती व्यवहार है/4
माँ शब्द की महिमा अमित न राज शब्द भंडार मे,
करूँ विवेचन मै कैसे कण-कण मे त्याग अपार है/5
माँ जैसा कोई रूप नहीं सुख की अद्भुत किताब ,
माँ शब्द-शब्द मे अमृत धारा ज्ञान की आधार है/6
अनमोलित माँ की गरिमा अगणितीय हिसाब,
सीप-सीप मोती निकाल नवजीवन की सृजनहार है/7
राजकिशोर मिश्र ”राज”
२६/०७/२०१५ रविवार

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि