गीतिका=अमृत की नवधार
माँ तेरे चरणों मे बहती अमृत की नवधार है,
माँ तेरी छाया अलौकिक ममता बड़ी अपार है/1
राज खोजत नित धरा पे माँ तेरा सानी नही ,
माँ हर गली खुशहाल करती प्रेम की आधार है/2
अनुराग की अनुपम छटा देखना हो गर जिसे
देख ले आँखों मे माँ के ममता करती विहार है/3
गर नहीं खुलती है आँखें सीख ले वे श्वान से,
नित सजग प्रहरी बना स्वामि हिती व्यवहार है/4
माँ शब्द की महिमा अमित न राज शब्द भंडार मे,
करूँ विवेचन मै कैसे कण-कण मे त्याग अपार है/5
माँ जैसा कोई रूप नहीं सुख की अद्भुत किताब ,
माँ शब्द-शब्द मे अमृत धारा ज्ञान की आधार है/6
अनमोलित माँ की गरिमा अगणितीय हिसाब,
सीप-सीप मोती निकाल नवजीवन की सृजनहार है/7
राजकिशोर मिश्र ”राज”
२६/०७/२०१५ रविवार