कविता : अचानक एक मोड़ पर
अचानक एक मोड़ पर , अगर हम मिले तो ,
क्या मैं , तुमसे ; तुम्हारा हाल पूछ सकता हूँ ;
तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?
अगर मैं तुम्हारे आँखों के ठहरे हुए पानी से
मेरा नाम पूछूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?
अगर मैं तुम्हारी बोलती हुई खामोशी से
मेरी दास्ताँ पूछूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?
अगर मैं तेरा हाथ थाम कर ,तेरे लिए ;
अपने खुदा से दुआ करूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?
अगर मैं तुम्हारे कंधो पर सर रखकर ,
थोड़े देर रोना चाहूं ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?
अगर मैं तुम्हे ये कहूँ ,की मैं तुम्हे ;
कभी भूल न पाया ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?
आज यूँ ही तुम्हे याद कर रहा हूँ और
उस नाराजगी को याद कर रहा हूँ ;
जिसने एक अजनबी मोड़ पर ;
हमें अलग कर दिया था !!!
सुनो , क्या तुम अब भी मुझसे नाराज हो जानां !!!
© विजय कुमार