कविता

कविता

मेरे लिए ये आंसू अच्छे हैं
आँखों से बरसती
बूँद गिरी धरती पर
अच्छा ही हुआ
जाने कितने दबे हुए दर्द
को मैंने समेट रखा था आँखों में
आज बह ही गये
दर्द जब घुटते घुटते ले लेती है
रूप ज्वालामुखी का
तब उसे
फटना ही होता है
मन के भीतर उबल रहा लावा
ले आता है
कितनी पीड़ाओ को बाहर
तब दिखाई देती है
ज्वालामुखी से हुई तबाही
जो बहा ले जाती है न जाने क्या क्या
तब लगता है आंसू
अच्छे हैं
जो बह कर कर देते हैं
मन शांत
बिना फटे किसी ज्वालामुखी के

सरिता