मेमन की फांसी पर
(याकूब मेमन की फांसी पर ओवैसी और सलमान खान के बयानों पर आक्रोश जताती मेरी ताज़ा रचना)
न्यायालय,जो लोकतंत्र की मर्यादा का रक्षक है,
न्यायालय,जो भारत की संप्रभुता का संरक्षक है,
न्यायालय,जो घावों पर औषधि का लेप लगाता है,
न्यायालय,जो पीढ़ित को सच्चा इन्साफ दिलाता है,
उसी न्याय के मंदिर पर कीचड़ फेंका शैतानों ने,
ओवैसी ने जूता मारा,थूंक दिया सलमानों ने,
जिस मेमन के तार जुड़े थे पाकिस्तानी गलियों में,
जिस मेमन का दाम लगा था दाऊद की रंगरलियों में,
जो मेमन दहशतगर्दों का,प्यारा राज़ दुलारा था,
जो मेमन मुम्बई नगरी का कातिल था हत्यारा था,
उस मेमन की फांसी को नाजायज़ बोला जाता है,
न्यायालय के निर्णय को मज़हब से तौला जाता है,
नर्तक, भांड, विदूषक नैतिक पाठ पढ़ाने निकले हैं,
धर्मराज को दुर्योधन इन्साफ सिखाने निकले हैं,
लोमड़ियां भी देखो मुँह में घास दबाये बैठी हैं,
सांपो की औलादें, अमृत कलश सजाये बैठी हैं,
कौए का अंडा इनको अखरोट दिखाई देता है,
भारत की हर परम्परा में खोट दिखाई देता है,
ये वो हैं जो फुटपाथों पर कार चढाने वाले हैं,
ये वो हैं जो कौशल्या को गाली देने वाले हैं,
सदा बाबरी पर रोये, ना बोले मथुरा काशी पर,
मेमन पर बोले,ना बोले सरबजीत की फांसी पर,
खून मुगलिया जिनके अंदर उनका “गौरव”गान नहीं
बजरंगी तो छोडो,ये तो ढंग के भाई जान नहीं,
——कवि गौरव चौहान