गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कर्ज धरती माँ का वो अदा कर चले थे
अपना सब कुछ वतन पर लुटाकर चले थे

त्याग कर घर अपना छोटी सी उम्र में ही
राष्ट्रहित के पथ पर सीना तान कर चले थे

कभी न सोचा अपने सुख के लिए उन्होंने
देश की आन पर जान न्यौछावर कर चले थे

कभी न डरे,कभी न झुके जालिमों के आगे
वीरता से अंग्रेजों का मुकाबला कर चले थे

लड़ते रहे अपनी आखिरी सांस आने तक
खून का आखिरी कतरा भी फना कर चले थे

तड़प उठा था तब भारत माँ का सीना भी
जब  स्वतंत्रता सैनानी प्राण त्यागकर चले थे ।

प्रिया वच्छानी

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

One thought on “ग़ज़ल

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता , उन देश भगतों ने तो अपना सब कुछ लुटा दिया लेकिन आज के बहुत से नेता लोग तो उन महान लोगों की राख भी बेच रहे हैं .

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