श्रद्धांजलि – एक भविष्य दृष्टा को
अखबार बाँटने से लेकर उनकी सुर्खियाँ बनने तक
कागज के जहाज़ों से लेकर राकेट गढ़ने तक,
साधारण से असाधारण कि सीढ़ियाँ चढ़ने तक,
ऊँची-नीची हर तरह की डगर पर,
न हताषा न थकान
सदैव होठों पर लिये प्रारब्ध की मुस्कान
बढ़ा जाता था वो एक अनवरत सफर पर।
समस्याओं के समुंदर पार करता हुआ
वो बढ़ा जाता था अपने सपनों के पीछे
सपने जो उसे चैन से सोने नहीं देते
सांसारिक वैभव को पिरोने नहीं देते
सपना, अपने देश को सर्वोच्च देखने का
सपना, वो कर गुज़रने का जो
चन्द बड़ी ताकतों के ही बस में था
सपना, जो भूख था, प्यास था,
उसकी नस नस में था
अपने देश को शक्तिशाली और समृद्ध देखने का
शिक्षा और आय में चहुँ ओर वृद्धि देखने का
और जब वो पकड़ में आये तो उन्हें
अनन्त तक का विस्तार दिया
अपने सपनों के भारत को साकार किया।
पर कौन रोक पाया है समय के आघात को
वो भी चला गया छोड़ हमें प्रलाप को
एक सरल और निश्छल जीवन
बस गया जो जन जन के मन में
अगणित सपनों की तरह
जो रहा हमारे बीच
हमारे अपनों की तरह
हर नया कदम देश का
उनका ही ‘कलाम’ है
हम कृतज्ञ भारतवासियों का
उन्हें आखिरी सलाम है।