जिन्दगी ना जाने तु किस गति से चलती है
रोज सपनो मे पलती है
रोज हाथों से फिसलती है
जिन्दगी ना जाने तु
किस गति से चलती है
कभी भरती है
झोलियां खुशियों से
कभी दगाबाज सी
छलती है
जिन्दगी ना जाने तु
किस गति से चलती है……
बिठाती है
कभी अर्श पर
कभी
जमीं भी फिसलती है
जिन्दगी ना जाने तु
किस गति से चलती है…..
कभी खिलाती है
फूल गुलशन मे
कभी
कलियों को मसलती है
जिन्दगी ना जाने तु
किस गति से चलती है…..
कभी सब से
गले मिलाती है
कभी
खुद भी बचकर निकलती है
जिन्दगी ना जाने तु
किस गति से चलती है…..
कभी दीवाली सी
जगमगाती है
कभी
ज्वामुखी सी जलती है
जिन्दगी ना जाने तु
किस गति से चलती है…..
पुतले बना के छोडे है
इन्सान जिनको कहते है
डोरी को हाथ मे लिये
किरदार तू बदलती है
जिन्दगी ना जाने तु
किस गति से चलती है….
जिन्दगी ना जाने तु
किस गति से चलती है…..
सतीश बंसल
बस यही जिंदगी है ,जो आप ने बिआं की है ,कविता अच्छी लगी .
आपका बहुत बहुत आभार भमरा साहब..