तनावग्रस्त या चिंतित होना
यह एक आम शिकायत है। यह कोई शारीरिक बीमारी नहीं है, बल्कि मानसिक बीमारी है, जिसका सीधा असर शरीर पर भी पड़ता है और लम्बे समय तक तनावग्रस्त रहने पर व्यक्ति शारीरिक रूप से भी बीमार हो जाता है। जब मनुष्य तनावग्रस्त हो जाता है तो उसका दिमाग केवल उसी के बारे में सोचता रहता है। कहावत है कि चिता तो मुर्दे को जलाती है पर चिंता जीवित व्यक्ति को ही जला डालती है। यह पूरी तरह सत्य है। हमें तनाव या चिंता को दूर करने के लिए उसके कारण को दूर करना चाहिए। कारण समाप्त हो जाने पर चिंता भी अपने आप समाप्त हो जाती है।
चिंता कई कारणों से हो सकती है, जैसे भूतकाल में हुई कोई घटना, वर्तमान काल की कोई समस्या और भविष्य में किसी संकट के आने का डर। इनमें से भूतकाल में हुई किसी घटना के बारे में सोच-सोचकर चिंतित होना निरर्थक है। हम किसी भी तरह भूतकाल की किसी घटना को बदल नहीं सकते। परंतु इतना अवश्य कर सकते हैं कि उस घटना के कारण यदि कोई नकारात्मक प्रभाव हुआ हो, तो उसे न्यूनतम या समाप्त कर सकें। इसलिए भूतकाल की घटना पर सोचकर अपने जी को जलाने के बजाय हमें यह देखना चाहिए कि उसका इस समय हमारे ऊपर क्या प्रभाव हो रहा है। यदि ऐसा कोई प्रभाव न हो, तो उस घटना को इतिहास का अंग मानकर भूल जाना चाहिए। उसके लिए चिंतित होना बेकार है। यदि प्रभाव हो रहा हो, तो उसको समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। यदि उसको समाप्त करना संभव नहीं है, तो उसे नियति मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए।
जहां तक भविष्य में कोई संकट आने की आशंका के कारण आप चिंताग्रस्त हैं, तो वह चिंता भी बेकार है। अगर संकट को आना होगा, तो वह आयेगा ही और अगर हम उसे रोक नहीं सकते तो उसकी चिंता करना सरासर मूर्खता है। हम केवल इतना कर सकते हैं कि ऐसे संकट से निपटने के लिए तैयारी रखें, यदि ऐसा करना संभव हो। वरना भविष्य के संकट को भविष्य के ऊपर ही छोड़ देना चाहिए कि जब वह आयेगा तो उससे निपट लेंगे।
अब आइए वर्तमान समस्याओं पर। समस्याएं हमारे जीवन का अंग हैं। हर किसी को कोई न कोई समस्या होती है। समस्याओं से जूझने में ही जीवन का आनंद है। जिस व्यक्ति के जीवन में कोई समस्या नहीं है वह इस आनंद से वंचित रहता है। इसलिए यदि आपके सामने कोई छोटी या बड़ी समस्या है तो उसके समाधान में जुट जाइए। यदि उसका कोई समाधान ही नहीं है तो उसे एक वास्तविकता मानकर स्वीकार कर लीजिए।
इस प्रकार समस्या चाहे कैसी भी हो, उसका समाधान करना ही उचित है। उसके बारे में चिंतित रहना कोई समाधान नहीं है, बल्कि यह स्वयं एक समस्या है और अनेक नयी समस्याओं को पैदा कर सकता है। लगातार तनावग्रस्त रहने से व्यक्ति अवसाद से घिर सकता है और निराशा में कोई गलत पग उठा सकता है। इसलिए तनाव और चिंता से बचना चाहिए।
समस्याओं का समाधान कैसे किया जा सकता है, इसके बारे में फिर कभी।
विजय कुमार सिंघल
लेख पूरा पढ़ा। बहुत अच्छा, शिक्षाप्रद एवं ज्ञानवर्धक लेख है। यह लेख तो छोटा है परन्तु इसे सदैव साथ रखना उचित होगा। जब भी कोई तनाव व समस्या उत्पन्न हो उसके हल करने के उपायों के साथ इस लेख से मार्ग दर्शन लेना चाहिए। जनहितकारी इस महत्वपूर्ण लेख के लिए हार्दिक धन्यवाद माननीय श्री विजय जी।
अनमोल बचन बहुत अछे लगे ,बिलकुल सत्य है जो आप ने लिखा है .