बाल कहानी : अनोखे अतिथि
सुदूर दक्षिण स्थित केरल प्रांत के रामेश्वरम मे एक छोटा सा गाँव था , जहाँ मछुवारा समुदाय के अनेक लोग रहते थे | समुद्र मे मछलियाँ पकड़ना और किराए पर नावें चलाना रोजी रोटी का मुख्य जरिया था | सभी मिलजुल कर रहते थे | इन्ही के बीच संघर्षों मे पलने वाला एक बच्चा अपने सपनों को तूल देने की कोशिशों मे लगा था | वह खूब पढ़ना चाहता था | आकाश की ऊंचाइयों मे उन्मुक्त उड़ना चाहता था | लेकिन एक दिन समुद्र मे आए तूफान ने उसके पिता की नाव दूर बहा दी | रोजी रोटी का जरिया छिन गया | सपने चूर होने लगे | पर बच्चे ने हिम्मत न हारी | वह रेलवे स्टेशन से अखबार लाकर सड़कों पर बेचने लगा | खर्च तो निकला ही , अखबारों ने उसकी पढ़ने की प्यास और जगा दी | खूब आगे बढ्ने के सपने देखता हुआ वह खूब मन लगाकर पढ़ता और काम भी करता |
बड़े होते बच्चे को अनेक लोगों के साथ दो लोगों का विशेष सहयोग मिला | एक था वहाँ का मोची , जो उसके जूतों का ध्यान रखता और बच्चे के सपनों की तरह उन्हे चमकाने मे कोई कसर नहीं छोड़ता था | दूसरा वहाँ का एक ढाबे वाला , जो उसे रोज हर परिस्थिति मे खाना खिलाता और बच्चे के बड़े होते सपनों को थकान और कमजोरी से बचाने मे सहयोग देता | जीवन की गाड़ी धकेलते हुए बच्चा किशोर बना , फिर युवावस्था के पंख लगाकर खुले आकाश मे उड़ चला | अपनी अदम्य जिजीविषा के बल पर उसने अपने सपनों को आकार दे दिया | उनमे सफलता के रंग भर दिये | उसका कद इतना बढ़ गया कि संघर्षों के पहाड़ बौने हो गये | सफलता की कहानियाँ समन्दर जैसी फैलती चली गई | देश – दुनिया मे उसका रुतबा , उसकी हनक कायम हो गई | इस लंबी यात्रा मे गाँव के लोग , वह मोची और वह ढाबेवाला दूर कहीं पीछे छूटते चले गये | किसी को उम्मीद भी न थी अब उस बच्चे को वे छोटे – छोटे गरीब और दलित लोग याद भी होंगे |
एक दिन देश के सबसे बड़े और ताकतवर सत्ता के केंद्र राष्ट्रपति भवन से खबर आई कि वहाँ बहुत बड़ा जलसा है | जिसमे उस बड़े हो चुके बच्चे के पारिवारिक सदस्यों समेत गाँव के लगभग पचास लोगो को बुलाया गया है | सब भौचक थे , अभिभूत थे , इस राजसी मेहमान नवाजी से | किसी ने भी इस तरह से यहाँ पहुँचने का सपना तक नहीं देखा था | लेकिन सब कुछ सपने से भी ज्यादा सच्चा और अच्छा था | उन सबको उसी गाँव के बच्चे ने बुलाया था , जो अब इतना बड़ा हो गया था , इतना अधिक बड़ा हो गया था कि दुनिया के हर हिस्से तक उसकी परछाईं पहुँच गई थी | लोगों ने जमकर खाया पिया , घूमे – नाचे , जिंदगी का असली सुख अनुभव किया और आनन्द पूर्वक अपने गाँव को जब लौट गए | अब उन्हे भरोसा हो गया था कि ईश्वर सचमुच आकाश मे सच्चे मन से उड़ने का सपना देखने वालों को सफलता के पंख जरूर देता है |
……….. और इसके कुछ दिनों बाद ही जब वह बड़ा हो चुका बच्चा एक महाराजा की भांति पहली बार अपने गृहराज्य केरल पहुंचा तो फिर एक चमत्कार सबकी प्रतीक्षा कर रहा था | विशालकाय और सुंदर राजभवन मे उसके स्वागत – सत्कार के भव्य इन्तजाम थे | इतना भव्य इन्तजाम कि आम आदमी तो उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था | लेकिन इस अवसर पर यहाँ बुलाये गये दो मुख्य अतिथि तो अपने स्वागत सत्कार को कल्पना भी मानने को तैयार न थे | वे अपने शरीर को बार – बार चिकोटी काट कर यथार्थ को समझने का प्रयास कर रहे थे | पर सत्य तो सत्य था जिसे कोई भी झुठलाने की हिमाकत नहीं कर सकता था | वहाँ हर व्यक्ति आश्चर्य चकित था | महामहिम के विशेष निर्देश पर आमंत्रित किए गये ये दोनों विशेष अतिथि वही “ मोची और ढाबेवाले ” थे , जिन्होने बच्चे के सपनों को चमकाने मे भरपूर सहयोग किया था | आज वही दोनों इस भव्य समारोह के “गेस्ट ऑफ ऑनर” थे | सफलता के शिखर पर पहुँच चुका वह बच्चा अपनी जमीन से जुड़े छोटे से छोटे व्यक्ति को भी नहीं भूला था |
क्या आप जानना चाहेंगे कि महामहिम बन चुका रामेश्वरम का वह छोटा बच्चा कौन था ? – निसन्देह , वह भारत के मिसाइल मैन से राष्ट्रपति बन चुके डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम ही थे | जिनका सारा जीवन ऐसे प्रेरक प्रसंगों से भरा पड़ा है |
— अरविन्द कुमार साहू