ताजी कुंडलिया
कृष्ण-सुदामा की तरह, मिले नहीं अब मीत।
झूठ-मूठ बस स्वार्थवश, करते दिखते प्रीत।
करते दिखते प्रीत, जेब जो होती भारी।
देख कहेंगे रिक्त, भाड़ में जाए यारी।
कह ‘पूतू’ कविराय, करें मत ऐसा ड्रामा।
तोड़ सभी दीवार, बनें हम कृष्ण-सुदामा॥
पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’