कविता

कविता

रखती है जिन्दा मुझे
तेरे मिलने की आस
अब जब भी आना ,तो
बादल की आगोश बन आना
फिर हमारे बस में होगा
बारिश की तरह बरसना
बर्फ बन झरना
स्पर्श कर गुजर जाना
पर्वतों को
मरुस्थलो को भ्रम या
संतोष देना भी
हमारे हाथ में होंगे
सात रंगों के चित्र
बिखेर सकेगें हर तरफ
सूरज को पीठ पर लाद
गहरी ठंडी छाव बन सकेंगें
हर तपते ह्रदय के लिए ..!!

रितु शर्मा .

रितु शर्मा

नाम _रितु शर्मा सम्प्रति _शिक्षिका पता _हरिद्वार मन के भावो को उकेरना अच्छा लगता हैं