चार दंशिकाएँ
कपड़े, रंग बिरंगे, आँखों में थिरकते कपड़े फुटपाथों पर सस्ते, दूकानों पर मंहगे बिकते और सजते कपड़े। फैशन का तन उजागर करते अपनी किस्मत पर इतराते कपड़े, और दो दिन में पोंछा बन जमीन पर आ जाते कपड़े । मूर्ख, रिश्तों का मर्म नहीं समझते । किसी गरीब के तन पर चढ़े होते तो सालों-साल सीने पर जड़े होते फट जाते फिर भी पेबन्दों से जुड़े होते, आज लालच के जूते चमकाते पैरों तले लतियाए जाते कपड़े ।
एक हाथ, एक विशालकाय हाथ, नियम संहिता द्वारा पोषित करों का प्यासा पूँजीपतियों, नेताओं और रिश्वतखोरों के सरों के उपर से होता हुआ हम गरीबों की जेबें टटोलता हुआ, एक सरकारी हाथ।
एक सड़क जिस पर उधर से उधर दौड़ती गाड़ियाँ रंग बिरंगी सस्ती मंहगी मोटर गाड़ियाँ। एक कुत्ता, महत्वाकांक्षी कुत्ता सड़क को पार करने की ताक में इक रोटी का टुकड़ा उठाने की फिराक में जिसे बेकार समझ किसी रईस गाड़ी ने सड़क पर फेंक दिया था। बेवकूफ, जानता ही नहीं कि रईसों के फेंके टुकड़े उठाएगा तो अपना वजूद भी गँवाएगा।
एक औरत, झीने कपड़ों में आधी छिपी आधी उजागर, महकती, इठलाती, एक मंहगी औरत, सरेशाम एक कुत्ते को टहलाती हुई, उसकी चाल पर खुश होती, इतराती हुई, एक मंहगी औरत। एक सड़क छाप कुत्ता, एक से दो हो जाने की ताक में रिश्ता बनाने की फिराक में, उस रईस कुत्ते के पास आया, दुम हिला कर,सूँघ कर, परिचय बढ़ाने का उपक्रम रचाया, औरत ने हाथ का डंडा हिलाया। “बदतमीज़ ! अपनी औकात से सिवा होता है ? जानता नहीं, परिचय का भी एक दर्जा होता है ?