पर जानें क्यों….
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पर जाने क्यों???
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पर जाने क्यों लोग यहां——— अभिमानी बन जाते हैं।
हद कर जाते सीमा को,———- मानवता भूल जाते हैं।
वश नहीं जब चलता है तो— साथ निभाना छोड़ जाते हैं।
किसी माध्यम से प्रताड़ित करने का मन में भाव जगाते हैं।
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नरता का आदर्श- उसके स्वभाव से पलायन कर जाते हैं।
जो देता नहीं किसी को प्रकाश,आग में सदैव जल जाते हैं।
अपने मन में आजीवन——– सद्विचार नहीं रख पाते हैं।
जीवन में –अच्छे पद के अधिकारी कभी नहीं बन पाते हैं।
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अन्तिम साथ न दिया अगर तो—- और देकर- देना क्या?
करने लगे मोह अपनो का— तो फिर साथ निभाना क्या?
वो कहता सहज, कठिन हर परिस्थिति में साथ निभाऊंगा।
हर- पल, हर- क्षण, साथ में रहकर अपना मोल चुगाउंगा।
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चापलूसी करने की कीमत- हर जगह मिलती है कुर्बानी।
उन- पर ,तब-तक सभी बने रहते हैं— त्यागी, बलदानी।
असत्य का सहयोग लेकर कहते- अपने को स्वाभिमानी।
झूठे वादों, झूठे फासों में फसाकर करते हैं— मनमानी।
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जीवन का अभियान दूसरों को, ज्ञान दान देने से चलता है।
उतनी ही ज्योति बढती— जितना स्नेह का लव जलता है।
और जो हम रोकर , हँसकर दूसरों का सहायता करते हैं।
अहंकार वश उसे हम अपना त्याग, बलिदान मान लेते हैं।
रमेश कुमार सिंह/ ९५७२२८९४१०
२२-०७-२०१५<e