सावन
सावन के संग, प्रीत प्रीत गाने लगा मन
प्रफुलित मखमली धरा लगने लगी।
अबकी फुहारों मे ना जाने कैसा जादू बसा
बूंद बूंद अंग अंग प्रीत जगने लगी।
खोल पंख सपनों के, पंछियो सा उडे मन
आसमान छूने की ललक जगने लगी।
जाने कौन सा संदेशा ले के आयी है फुहार
प्रीत मीत रीत की लगन लगने लगी।
शाख शाख लहराये बल खाये हवा संग,
पाती पाती तालियां बजाने लगीं झूम के।
खुशियों के जाम बांटने लगी है हर बूंद,
कलियों के कोमल बदन चूम चूम के।
चहक उठे चकोर पीहू पीहू बोले मोर
दादुर लगाये टेर टेर घूम घूम के।
मस्ती का खोल के पिटारा हर बदली ने
जाम पिला दिया हो जैसे चूम चूम के॥
बाहें फैला हरियाली आतुर है चहुं और
पर्वत सजे है धरा वसुंधरा हुई।
तृण तृण है उमंग पाती पाती राग रंग
नवयौना सी खूबसूरत धरा हुई।
नदियों की अंगडाई बाड कहां रोक पायी
यौवन के मद मे दीवानी जरा जरा हुई
बाहों मे समेटने को आतुर सा वेग लिये
तोड सारे बंधनो को धारा धरा धरा हुई॥
पा के दिल का करार, गाती खुशियां मल्हार
बाहों मे बाहों के हार ,लिये जिन्दगी चली।
त्राहि त्राहि बीत गई, ऋतु लाई रीत नई
चहुं और देखो जिन्दगी की जिन्दगी पली।
मुरझाई बगिया मे डोलने लगे पतंगे,
नव रंग नव रूप धरने लगी कली
यूं ही हर बार लेके आना रस की फुहार
अलबेले सावन खिलाना मन की कली॥
सतीश बंसल