आत्मकथा

आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 32)

चुघ साहब और नितिन राजुरकर

अभी तक हम अपने संस्थान का हिसाब-किताब स्वयं रखा करते थे। परन्तु हम सभी कम्प्यूटर अधिकारी थे, इसलिए हिसाब-किताब का काम करने में कठिनाई अनुभव करते थे। लेखाबन्दी के समय यह कठिनाई अधिक बढ़ जाती थी। इसलिए हमारे निरन्तर आग्रह पर हमें एक अधिकारी मिले श्री के.सी. चुघ, वरिष्ठ प्रबंधक, जो मंडलीय कार्यालय चंडीगढ़ से हमारे संस्थान में आये थे। वे मूलतः सोनीपत के रहने वाले थे और दो-ढाई साल में रिटायर भी होने वाले थे। संस्थान के एकाउंट का कार्य मैं और चुघ साहब दोनों मिलकर देखते थे। वास्तव में मैं उनसे यह कार्य सीख रहा था।

जब चुघ साहब हमारे संस्थान में पदस्थ हुए, तो मंडलीय कार्यालय के मेरे परिचित एक अधिकारी ने मुझसे कहा कि इनसे बचकर रहना। मैं उस समय समझ नहीं पाया कि वे ऐसा क्यों कह रहे हैं। लेकिन शीघ्र ही इसका रहस्य मुझे ज्ञात हो गया। बात यह थी कि चुघ साहब गलतियाँ पकड़ने में सिद्धहस्त थे और कई अधिकारी, जो जानबूझकर बैंक को धोखा देने के इरादे से बिलों में या लेन-देन में गड़बड़ करते थे, उनकी करतूत को चुघ साहब पकड़ लेते थे और उनको सजा दिलवाते थे। चंडीगढ़ मंडल के ऐसे 5 अधिकारियों को वे निलम्बित (सस्पेंड) करा चुके थे। इसी बात के सन्दर्भ में मेरे मित्र ने मुझे सावधान किया था। परन्तु मुझे डरने की कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि मैं तो ऐसी गड़बड़ कभी करता ही नहीं।

परन्तु हमारे संस्थान के एक अधिकारी श्री नितिन राजुरकर ने ऐसी गलती कर दी। हुआ यह कि वे किसी ट्रेनिंग पर बाहर गये थे। वापस आकर उन्होंने होटल के बिल में ओवरराइटिंग करके रकम बढ़ा ली। जब बिल पास होने के लिए मेरे और चुघ साहब के पास आया, तो मुझे ओवर राइटिंग के कारण शक हुआ। मैंने गौड़ साहब को इसकी जानकारी दी। उनको भी शक हो गया, क्योंकि ओवरराइटिंग बहुत मूर्खता से की गयी थी, जिस पर किसी का भी ध्यान जा सकता था। उन्होंने होटल को फोन करके उस बिल की दूसरी प्रति (कार्बन प्रति) की फोटोकापी मँगा ली। जब बिल की दूसरी प्रति आयी, तो राजुरकर साहब की जालसाजी स्पष्ट हो गयी।

इसके साथ ही चुघ साहब ने राजुरकर के पुराने बिलों की भी छानबीन चालू कर दी, जिनका भुगतान मैं चुघ साहब के आने से पहले कर चुका था। पता चला कि एक बार उन्होंने हवाई जहाज के किराये में जो दोनों तरफ का 20 हजार होता है, एक-एक तरफ का 20 हजार वसूल कर लिया था। यह जानकारी होते ही हमने उनके वेतन से 20 हजार की कटौती कर ली। वह बिल मैंने पास किया था, इसलिए मेरी भी गलती थी, परन्तु नितिन राजुरकर ने इस पर चुप्पी साधे रखी और अधिक रकम वसूल कर ली, इसलिए उस गलती के लिए भी उनको दोषी माना गया।
बेईमानी स्पष्ट होते ही नितिन राजुरकर को सारे कामों से अलग कर दिया गया, उनको कम्प्यूटर छूने से भी रोक दिया गया और एक खाली कमरे में अलग बैठा दिया गया। इस मामले की पूरी रिपोर्ट चुघ साहब ने तैयार करके मंडलीय कार्यालय चंडीगढ़ को भिजवा दी। शीघ्र ही उनके निलम्बन का आदेश आ गया। बाद में राजुरकर को शायद चेतावनी देकर माफ कर दिया गया, परन्तु वे बैंक की नौकरी से निकल गये और किसी प्राइवेट कम्पनी में चले गये। वास्तव में नितिन राजुरकर बहुत योग्य हैं, हमारे संस्थान में जो साॅफ्टवेयर तैयार किया जा रहा था, उसमें उनका बहुत योगदान था, परन्तु पैसे की भूख ने उनकी बहुत बेइज्जती करायी।

होली समारोह

मैं बता चुका हूँ कि श्री वी.के. चावला उस समय चंडीगढ़ मंडल के उप महा प्रबंधक थे। 2006 में उन्होंने सभी अधिकारियों और उनके परिवार के साथ होली मिलन का आयोजन किया। यह आयोजन पंचकूला से सटे हुए जीरकपुर में शिमला हाईवे के किनारे बने एक बड़े होटल में किया गया था। मैं प्रायः ऐसे आयोजनों में भाग नहीं लेता, लेकिन कुछ अधिकारियों के आग्रह पर श्रीमतीजी के साथ इसमें शामिल हुआ। वहाँ खाने के साथ पीने की भी व्यवस्था थी, जो मेरे किसी काम की नहीं थी। बीच में डांस भी हुआ। श्रीमतीजी ने अच्छा डांस किया। चावला जी से उनका परिचय नहीं थे, जब उन्हें ज्ञात हुआ कि वे मेरी धर्मपत्नी हैं, तो बहुत आश्चर्य करने लगे। बाद में उन्होंने सभी पति-पत्नी के जोड़ों को बुला-बुलाकर डांस कराया। हम दोनों ने भी थोड़ी देर नृत्य किया। चावला जी स्वयं भी नाचे थे और वे अच्छा नाच लेते हैं।

अनिल नेमा की समस्या

श्री अनिल नेमा हमारे संस्थान के एक कम्प्यूटर अधिकारी थे और फैकल्टी के रूप में जबलपुर से वहाँ आये थे। वे बहुत सीधे और कम बोलने वाले हैं। उनकी एक प्यारी सी बेटी भी है, जो कभी-कभी हमारे संस्थान में आती थी।

एक दिन रविवार के दिन शाम को लगभग 5 बजे श्री नेमा बदहवास से हमारे घर पर आये। उनको इस हालत में देखकर हम घबड़ा गये कि पता नहीं क्या हो गया। पूछताछ करने पर उन्होंने बताया कि उनकी श्रीमती जी ने उनको मारा है और वे घर छोड़कर आ गये हैं। इसके अलावा उन्होंने और कुछ नहीं बताया। हम अपनी कार से उनको लेकर उनके घर गये। उनकी श्रीमती जी हमें जानती थीं। वे समझीं कि हम उनसे मिलने आये हैं। जब हमने बताया कि नेमा जी इस हालत में हमारे पास आये हैं और हम आपसे समस्या की जानकारी करने आये हैं, तब उन्होंने रोते हुए बताया कि जाने क्यों नेमा जी को यह शक है कि बेटी उनकी नहीं है। एक बार वे क्रोध में बेटी का गला ही दबाये दे रहे थे, जिसके कारण उन्होंने उनको थप्पड़ मारे थे और बेटी को बचा लिया था। तब हमारी श्रीमती जी ने दोनों को बहुत समझाया और कहा कि अपनी बेटी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए आपको ऐसा झगड़ा नहीं करना चाहिए। फिर हमने उनको राय दी कि आप दोनों सप्ताह में कम से कम एक बार साथ-साथ घूमने जाया करो और रोज मन्दिर भी जाया करो, जो पास में ही था। उनको काफी समझाकर हम लौटे।

उसी दिन वे सब मन्दिर गये और वहाँ काफी देर तक बैठे। तब उनके दिमाग को शान्ति मिली। सौभाग्य से इसके बाद फिर उनके घर से ऐसी कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई। बीच-बीच में मैं उनसे पूछ लेता था कि कोई समस्या तो नहीं है। नेमा जी भी काफी प्रसन्न और संतुष्ट नजर आते थे, इससे मुझे भी प्रसन्नता होती थी। उनकी पुत्री को तरह-तरह की टिकटें एकत्र करने का शौक था। मुझे जो भी टिकट, जैसे बस, ट्रेन, राॅक गार्डन, पिंजौर आदि की प्राप्त हो जाती थीं, मैं उनको दे देता था। कुछ समय बाद टिकटों से उनकी बेटी का मन भर गया, इसलिए मैंने भी देना बन्द कर दिया।

मलेशिया-सिंगापुर-श्रीलंका भ्रमण

मैं तो एक बार विदेश यात्रा (जापान की) कर आया था, लेकिन श्रीमतीजी और बच्चों को इसका मौका कभी नहीं मिला था। हालांकि वे कई बार भारत में ही हवाई यात्रा कर चुके थे। मेरी आर्थिक हैसियत ऐसी नहीं है कि उन्हें अपने बल पर विदेश भ्रमण करा सकता। तभी हमें पता चला कि हम बैंक की एलटीसी योजना के अन्तर्गत भी विदेश यात्रा कर सकते हैं। हमारे संस्थान में ही पदस्थ चुघ साहब कुछ समय पूर्व ही सिंगापुर-मलेशिया घूमकर आये थे और उन्होंने ही हमें यह जानकारी दी थी। वास्तव में कुछ कम्पनियाँ भारत के किसी स्थान जैसे चंडीगढ़ से त्रिवेन्द्रम या दिल्ली से अंडमान के बीच के हवाई जहाज के किराये में ही सिंगापुर-मलेशिया भी घुमा देते हैं। इसके लिए पूरा पैकेज होता है, जिसमें हवाई यात्रा के साथ ही होटल में ठहरना, नाश्ता और रात का खाना, हवाई अड्डे और होटल तक लाना-ले जाना तथा सीमित भ्रमण भी शामिल है। दोपहर का खाना और घूमने का शेष खर्च स्वयं करना पड़ता है।

यह पता चलते ही हमने मई-जून में सिंगापुर-मलेशिया की यात्रा का कार्यक्रम बना लिया। सबसे पहले तो हमने सबके पासपोर्ट बनवाये, जो दो महीने में ही आसानी से बन गये। चंडीगढ़ में इसकी व्यवस्था उत्तर प्रदेश की तुलना में अच्छी है और वहाँ भीड़भाड़ भी कम है। फिर हमने बैंक से इस यात्रा पर जाने की अनुमति ली। यह भी आसानी से मिल गयी, क्योंकि पहले कई अधिकारी इस प्रकार जा चुके थे। हमने अपनी टिकट भी एक एजेंट के माध्यम से बनवा लीं। हमने रात का खाना उसमें शामिल नहीं कराया, क्योंकि उसमें केवल माँसाहारी भोजन मिलता है। इसके बदले हमें कुछ पैसे मिल गये, जिनसे हम अपनी मर्जी से भोजन कर सकते थे। हमें पैकेज श्रीलंका एयरलाइन्स का मिला था, जो हालांकि बहुत अच्छा नहीं है, लेकिन और कोई विकल्प भी नहीं था।

निर्धारित दिन हम चंडीगढ़ से दिल्ली ट्रेन में गये, क्योंकि चंडीगढ़ से दिल्ली उड़ान का समय हमारे लिए सुविधाजनक नहीं था। वहाँ से हम टैक्सी में दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुँचे। फिर श्रीलंका एयरलाइन्स की उड़ान से कोलम्बो पहुँचे। वहाँ से प्रातःकाल की उड़ान से हम आराम से क्वालालाम्पुर पहुँच गये। वहाँ एयरपोर्ट के भीतर ही मेट्रो जैसी रेल चलती है, जिसे ऐरो एक्सप्रैस कहते हैं। उसमें बैठकर हम हवाईअड्डे के बाहरी भाग में आये। यह बहुत सुन्दर व्यवस्था है। हमें मलेशिया का वीजा वहीं पहुँचकर लेना था, जो फ्री मिलता है, लेकिन पूरी जानकारी न होने के कारण हम गलत काउंटर पर चले गये और उसने लगभग 5 हजार रुपये लेकर हमें वीजा दिया। बाद में गलती पता चलने पर हमने अपने रुपये वापस लेने की कोशिश की, लेकिन वह कोशिश बेकार गयी।

बाहर आने पर हमें पता चला कि हमारे साथ दो परिवार और भी आये हैं जो उसी कम्पनी के पैकेज को लेकर आये हैं। उनमें से एक श्री भारद्वाज पंजाब नेशनल बैंक के वरिष्ठ प्रबंधक थे, जो लुधियाना से आये थे और दूसरे श्री मेहरोत्रा बैंक आॅफ इंडिया के मुख्य प्रबंधक थे, जो हिसार से आये थे। वास्तव में ऐसे पैकेज पर घूमने वाले 90 प्रतिशत लोग बैंकों के ही होते हैं, क्योंकि उन्हें छुट्टी और अनुमति आसानी से मिल जाती है। श्री मेहरोत्रा के साथ उनके दो बच्चे थे- एक लड़का और एक लड़की। श्री भारद्वाज के साथ कोई बच्चा नहीं था। कुल मिलाकर हम 10 व्यक्ति थे।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

4 thoughts on “आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 32)

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते श्री विजय जी। आज की क़िस्त के लिए हार्दिक धन्यवाद। क़िस्त में दी गई जानकारी बहुत अच्छी एवं शिक्षाप्रद लगी। आपकी यात्रा की शेष जानकारी और अनुभव जानने की प्रतीक्षा है।

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम, मान्यवर ! आगे के अनुभव बहुत रोचक हैं.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , अज की किश्त भी अच्छी लगी , हेरा फेरी करने वाले हर जगह होते हैं ,और जब पकडे जाते हैं तो खामिआज़ा भी भुगतना पड़ता है .होली का पड़ा , लुत्फ़ उठाया और डांस भी किया ,कभी हम भी बहुत किया करते थे ,इस में कुछ फन्न हो जाता है . अनिल नेमा का पड़ा ,बहुत दफा गलत फैह्मिआं हो जारी हैं और आप ने पप्रीवार को फिर से पटरी पर ला दिया ,बहुत अच्छी बात हुई ,मलेशिया की सैर तो अगले एपिसोड में पता चलेगा ,बहुत रौचक अधियाये .

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, भाई साहब. आगे की कथा बहुत रोचक है.

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