गीतिका
आओ चलो कोई बात करते हैं
शुरू कोई नई किताबात करते हैं
जो करती है भेद इंसान इंसान में
दफ़न आज वो जज्बात करते है
कुछ देर के लिए छोड़ दो
ये अमीरी की बातें मेरे दोस्त
आओ शुरू फिर से बचपन की
वो मुफलिसी की बात करते हैं
लोग कहते हैं कि है नशा बुरा
यह जानता हूँ मैं भी मगर
यह भी सच है कि लोग
नशे में ही दिल की बात कहते हैं,
रात लाती होगी किसी के लिये रंगीनियाँ
मगर ये अभिशाप है जिन बेघर
और भूखों के लिए, आओ अपनी
रात उनके लिए क़ुर्बान करते हैं
यूँ तो लहू का रंग है एक जैसा तेरा मेरा
मगर तू है मुहम्मद और मैं केशव
आओ मिटा दें उन मजहब के ठेकेदारों को
जो हमें हिन्दू और मुसलमाँ करते हैं
– केशव
आपकी लेखनी को सलाम
गीतिका अच्छी लगी , लेकिन सभी मजहब की बात छोड़ सकते हैं लेकिन मुस्लिम कभी नहीं .