“कतार से पूछों “
सुना, आतंक का कोई मजहब नहीं होता
अर्थी और ताबूत का मातम नहीं होता
जलती चिता कब्र की कतार से पूछों
आग संग पानी का विवाद नहीं होता ||
फिर भी लोंग खूब लगाते है लकड़ी
दूसरे के माथे की गिराते है पगड़ी
सर सलामत तो पगडियां हजार हैं
नौ हाथ बिया की एक हाथ ककड़ी ||
महातम मिश्र
दोनों रचना उम्दा
सादर धन्यवाद आदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव जी, सादर सुप्रभात