कविता

कविता

होगा धरा से मिलन आस लगाये है गगन,
गगन के आँसू बनके बरसता है सावन।

बित जाता है पूरा वर्ष इंतजार में,
फिर भी नहीं आता बहार इनके प्यार में,
टूट जाते हैं सारे सब्र के बंधन।
गगन के आँसू बनके बरसता है सावन।।

सदियों से है धरती-गगन का अमर प्रेम कहानी,
एक दुजे के बिना नहीं बिता सकते जिंदगानी,
लेकिन इनके किस्मत में नहीं है मिलन।
गगन के आँसू बनके बरसता है सावन।।

नैनों से काजल बहकर बन गये हैं बादल,
धरती के आँसू देखो बने हैं सागर के जल,
आँसूओं से ही मिटा लेती अपनी सारी तपन।
गगन के आँसू बनके बरसता है सावन।।

सुनके गर्जन स्वागत में चारो ओर फूल बिछाती है,
आ रहा मिलने गगन खुद को भी खूब सजाती है,
मिलन नहीं होने पर भी सब कर लेती सहन।
गगन के आँसू बनके बरसता है सावन।।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

One thought on “कविता

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर रचना

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