आत्म मंथन
आत्ममंथन
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हांथों में जल लेकर
मंदिर के
द्वार पर खड़े हैं
शिव दर्शन को
भक्त जन
होड़ लगी है
पहले पहुँचने की
मंदिर के अंदर
कुछ
निकल आते हैं आगे
धकियाते हुए
कभी
खरीद लेते हैं
चंद सिक्कों से
प्रथम अभिषेक का अधिकार
भक्त गण
कि
कहीं
पहले मिल न जाए किसी और को
शिव का आशिर्वाद
और
मेरा मन
सोंचने पर हो जाता है
विवश
कि
भक्ति भी
खरीदी जा सकती है
क्या
प्रश्न करता है
कि
कैसे हो काया कंचन
क्यों न करें
आत्ममंथन
ॐ नमः शिवाय
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©कॉपीराइट किरण सिंह
मुस्कान खिल जाती है जब ऐसी हालात से गुजरती हूँ
टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार…… मेरी भी दशा कुछ ऐसी ही होती है