कविता
तेरी ममता,तेरे उपकार का समुचित वर्णन ,
क्या कभी भी कोई कर पाया है?
ऋषि-मुनि,संत-कवि और स्वयं ईश ने भी,
जग में आ चाही बस तेरी सुखद छाया है !
वर्णमाला के अ- से अपनापन,और ज्ञ-से ज्ञान,
सभी को,जीवन में अपनाना तुझसे सीखा!
जीवन में जब-जब ठोकर खाई,वेदना पायी,
तब-तब माँ तू ने गोद में ले माथा सहलाया है !
माँ तुम प्रतीक हो,कर्तव्य और निष्ठां की,
माँ तुम प्रतिमूर्ति हो,सहनशीलता की !
माँ तुम पराकाष्ठा हो,स्नेह और त्याग की,
पर तेरा समुचित वर्णन क्या कोई भी कर पाया है?
सुंदर रचना दी… माँ के स्नेह,ममता व वात्सल्य को कोटि कोटि नमन |
अच्छी रचना आदरणीया पूर्णिमा शर्मा जी, वाह
सवाल का जबाब आज तक कोई ना दे पाया है
सुंदर रचना दीदिया