कविता

********* औरत ************

औरत है खानाबदोश …………
अपने सपनो को वक़्त के
पहिये पर लादे,
पिता के घर से बेघर
पति के घर पड़ाव डालती,
निरंतर घूमती है
बेटी पत्नी माँ बन,
काफिले जोड़ती रिश्तों के
फिर भी अकेली,
हिम्मत हारने का अधिकार नहीं
क्योंकि उसका दिल धड़कता है
औरों के लिए,
अगर वह रूक जाए
तो रुक जाएगा
ज़िन्दगी का काफिला,

इसलिए बस चलती है
और चलती जाती है “नाज़ “,
खानाबदोश बन औरत।।।।।।।

__________________ प्रीति दक्ष “नाज़”

प्रीति दक्ष

नाम : प्रीति दक्ष , प्रकाशित काव्य संग्रह : " कुछ तेरी कुछ मेरी ", " ज़िंदगीनामा " परिचय : ज़िन्दगी ने कई इम्तेहान लिए मेरे पर मैंने कभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और आगे बढ़ती गयी। भगवान को मानती हूँ कर्म पर विश्वास करती हूँ। रंगमंच और लेखनी ने मेरा साथ ना छोड़ा। बेटी को अच्छे संस्कार दिए आज उस पर नाज़ है। माता पिता का सहयोग मिला उनकी लम्बी आयु की कामना करते हुए उन्हें नमन करती हूँ। मैंने अपने नाम को सार्थक किया और ज़िन्दगी से हमेशा प्रेम किया।

2 thoughts on “********* औरत ************

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता !

    • प्रीति दक्ष

      shukriya vijay ji

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