कविता

पिरामिड

(1)

ये
मन
मचला
महकता
गुलाब तोडें
मुरझाया सा है
जी व न चहके है

(2)

लों
यह
पंक्षी का
घों स ला है
चूं चूं क र ता
उ ल झ ता हुआ
दे ख ता आ का श है

(3)

मै
मै हूँ
मेरा क्या
अ फ सा ना
च ला जा उं गा
छो ड़ बि रा ने में
म त रख भ रो षा

(4)

ये
उठा
लाया हूँ
मणिका है
सितारों में से
स जा उं गा इसे
चित्र दिख लाऊंगा

महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

2 thoughts on “पिरामिड

  • विजय कुमार सिंघल

    मुक्त छंद कविता के साथ अच्छा प्रयोग !

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय श्री विजय कुमार सिंघल जी, बहुत दिनों बाद आप का आशीष मिला अच्छा लगा सर

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