गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : अपना बनाना चाहता हूँ

तुमको मैं  दिल में छुपाना चाहता हूँ।

मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ।।
आँखों को है भा गई सूरत तुम्हारी।
उससे अब ना  दूर होना चाहता हूँ।।
झील सी गहरी जो आँखे है तुम्हारी।
उसमें अब मैं डूब जाना चाहता हूँ।।
एक-दो दिन का अपना साथ ना हो।
मैं तुम्हारा साथ पल-पल चाहता हूँ।।
तुम मेरी हो आत्मा परमात्मा भी।
मैं फ़कत तेरा सहारा चाहता हूँ।।
अरुण कुमार निषाद 

 

डॉ. अरुण कुमार निषाद

निवासी सुलतानपुर। शोध छात्र लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। ७७ ,बीरबल साहनी शोध छात्रावास , लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। मो.9454067032

4 thoughts on “ग़ज़ल : अपना बनाना चाहता हूँ

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया गजल !

    • अरुण निषाद

      साभार धन्यवाद

  • प्रीति दक्ष

    अच्छी ग़ज़ल !

    • अरुण निषाद

      बहुत-२धन्यवाद

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