कुण्डली/छंद

तीन कुण्डलिया छंद

सोने की चिड़िया कभी, कहलाता था देश
आई आँधी लोभ की, सोना बचा न शेष।
सोना बचा न शेष, पुनः अपनों ने लूटा।
भरे विदेशी कोष, देश का ताला टूटा।
हुई इस तरह खूब, सफाई हर कोने की
ढूँढ रही अब डाल, लुटी चिड़िया सोने की।

पावन धरती देश की, कल तक थी बेपीर।
कदम कदम थीं रोटियाँ, पग पग पर था नीर।
पग पग पर था नीर, क्षीर पूरित थीं नदियाँ
हरे भरे थे खेत, रही हैं साक्षी सदियाँ।
सोचें इतनी बात, आज क्यों सूखा सावन?
झेल रही क्यों पीर, देश की धरती पावन।

कोयल सुर में कूकती, छेड़ मधुरतम तान।
कूक कूक कहती यही, मेरा देश महान।
मेरा देश महान, मगर यह सुन लो हे नर!
काट-काट कर पेड़, हमें अब करो न बेघर।
कहनी इतनी बात, अगर वन होंगे ओझल।
कैसे मीठी तान, सुनाएगी फिर कोयल।

कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]