सावन की प्रेरणा
सावन के पग चूम प्रकृति प्रसन्नचित हुई
भ्रमर की आस न टूटी न चाल बाधित हुई।
हृदय का उन्माद कब नयनों में गया उतर?
अंजुम गिन रहे हैं वो रात्रि के प्रत्येक पहर।
उकेरी कल्पना ने इक छवि रागरंजित हुए
पुष्प के स्वप्न भी प्रतीक्षा में समर्पित हुए।।
प्यास बुझ गई बरसों की प्रीत ऐसे तर हुई
अंकुरित यौवना सी उभर बूँद भी सागर हुई
गगन ने उदघोष से निमन्त्रण प्रेम का भेजा
दामिनी दौड़कर आयी भुजपाशों में सहेजा।
सरिता की तेज धारा कह रही रुकना नहीं
पर्वतों से डट के लड़ना मगर झुकना नहीं।
सम्मान में झुकना कभी अन्याय मत सहना
गन्तव्य पे पहुँच कर ही तुम्हें विश्राम है लेना।