गीतिका
एक गीतिका लिखने का प्रयास
आशाओं की सूनी राहें
कोलाहल से मन हारा है
राहे टेढ़ी जीवन पथ की
चलता सीधा बंजारा है ।
चलता जाता वक्त का चक्का
जीवन साँसों से हारा है ।
पाना चाहू तुझको मैं क्यों
नभ का तू तो इक मतारा ‘है ।
बूढी माँ का वृद्धाश्रम घर
अपनों से मन फिर हारा है।