गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

एक गीतिका लिखने का प्रयास

आशाओं की सूनी राहें
कोलाहल से मन हारा है

राहे टेढ़ी जीवन पथ की
चलता सीधा बंजारा है ।

चलता जाता वक्त का चक्का
जीवन साँसों से हारा है ।

पाना चाहू तुझको मैं क्यों
नभ का तू तो इक मतारा ‘है ।

बूढी माँ का वृद्धाश्रम घर
अपनों से मन फिर हारा है।