कविता

कविता

अनगिनत बाधाएँ तुम्हें ,
विचलित करेंगी सर्वदा ।

धैर्य को खोना नहीं,
उन्नत रखो मस्तक सदा। (1)

ले तिरंगा शान से ,
सद्भाव रख बढ़ना सदा ।

विजय पथ पर बढ़ चलो ,
कर दूर सारी आपदा ।(2)

वीर हो तुम, धीर बन,
पंकज सदृश खिलते रहो ।

माँ भारती की शान में ,
तुम काव्य नितरचते रहो । (3)

जागेगी सोई चेतना ,
विश्वास रख बढ़ते रहो ।

अखंड भारत ध्येय रख ,
सद मार्ग पर चलते रहो ।(4)

लता यादव (11/08/15)

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है