गीतिका —स्वप्न सुहाने
मन की बातें मन ही जाने ,
बात किसी की एक न माने ।(1)
जोगन बन कर बनबन घूमें ,
कमली की गत कमली जाने । (2)
आज उजागर हुए अछूते ,
ये अनुपम सन्दर्भ पुराने । (3)
शब्द जाल में गुँथ कर सपने ,
बन जाते नित नये तराने । (4)
परदेसी से लगन न करना,
समझाते सब लोग सयाने । (5)
मधुर मिलन की आस में देखो,
जल कर खाक हुए परवाने । (6)
लोकलाज तज मनवा फिर भी,
स्वप्न सजाये कुछ अनजाने । (7)
चले गोद में निंदिया की हम,
देखें कल के ख्वाब सुहाने । (8)
—–लता यादव