गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका —स्वप्न सुहाने

मन की बातें मन ही जाने ,
बात किसी की एक न माने ।(1)

जोगन बन कर बनबन घूमें ,
कमली की गत कमली जाने । (2)

आज उजागर हुए अछूते ,
ये अनुपम सन्दर्भ पुराने । (3)

शब्द जाल में गुँथ कर सपने ,
बन जाते नित नये तराने । (4)

परदेसी से लगन न करना,
समझाते सब लोग सयाने । (5)

मधुर मिलन की आस में देखो,
जल कर खाक हुए परवाने । (6)

लोकलाज तज मनवा फिर भी,
स्वप्न सजाये कुछ अनजाने । (7)

चले गोद में निंदिया की हम,
देखें कल के ख्वाब सुहाने । (8)

—–लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है