गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

सावन में हर बार सखी !
मन जाता है हार सखी !

आँखों से आंसू बहते हैं
रहता कब अधिकार सखी !

यादें उनकी ले आती हैं,
कष्टों का अम्बार सखी !

जीवन जिसके नाम जिया
कब दे पाया प्यार सखी !

पीडाओं की महफ़िल है
सपनों का उपहार सखी !

दर्द सभी लेकर नाचे हैं,
डमरू और सितार सखी !

शुभदा बाजपेई