गीतिका
सावन में हर बार सखी !
मन जाता है हार सखी !
आँखों से आंसू बहते हैं
रहता कब अधिकार सखी !
यादें उनकी ले आती हैं,
कष्टों का अम्बार सखी !
जीवन जिसके नाम जिया
कब दे पाया प्यार सखी !
पीडाओं की महफ़िल है
सपनों का उपहार सखी !
दर्द सभी लेकर नाचे हैं,
डमरू और सितार सखी !
— शुभदा बाजपेई