गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सलीकों में लपेटकर न हम रख पाये ज़िंदगी..
हमने नियम क़ानून की किताब ना पढ़ी।

चलते रहे जँहा भी दिल ने कह दिया चलो…
और झुक गए जँहा भी दिल ने कर ली बंदगी।

हमसे न हो सका कि किसी आस को सताएं..
दरिया से हूँ जुदा तो प्यास की कदर भी की।

तनहा जरूर थे मगर मग़रूर नही थे हम..
खुद को बना लिया था हमने खुद से अजनबी।

जो लोग जानते हैं वो कहते हैं खुश रहो यूँ ही..
पत्थर के इस शहर में हमें कोई जानता नहीं।

अबऔर कितना “रागिनी” साज़ों में हो दफ़न..
एक रोज़ खुद में हमको भीें ढँक लेगी ये ज़मी।

रागिनी त्रिपाठी

रागिनी त्रिपाठी

नाम-रागिनी त्रिपाठी जन्म-1जनवरी जन्म स्थान-- कानपुर(उप्र) शिक्षा-- MA-English MA- Economics B.Ed रूचि- संगीत,लेखन, चित्रकारी,किताबें पढ़ना। 12 वर्ष की आयु से लेखन कार्य कर रही हूँ। कई पुस्तकों द्वारा सम्मान मिला साथ ही विशेष रूचि समाज कल्याण में अपना सहयोग देती हूँ बालिकाओं की शिक्षा के लिए। प्रधानाचार्य एवं शिक्षक के पद पर कार्य करने के साथ ही कई मैगज़ीन में लेख लिखती रही हूँ। अब तक दो साँझा संग्रह से जुड़ चुकी हूँ ।महिला कल्याण पुस्तक लेखन कार्य व् संगीत से विशेष लगाव है।

One thought on “ग़ज़ल

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर गज़ल

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