गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

फिर तिरंगे में सुनामी,…. कुछ तो है ।
देश में पलता हरामी,…. कुछ तो है ।।

तुम हुए आज़ाद बस कहते रहो ।
तेरी फितरत में गुलामी,….कुछ तो है ।।

फिर धुआं दिखने लगा संसद में है।
उसकी आदत में निजामी,….कुछ तो है।।

मज़हबी साया में देखो हुश्न बेपर्दा हुआ ।
हो गयीं वह भी किमामी,…..कुछ तो है ।।

जिसकी सत्ता थी नहीं उसको कबूल।
दे रहा है वो सलामी ,….कुछ तो है ।।

पुख्ता सबूतो पर मिली फाँसी उसे ।
क्यों हुई ये ऐहतरामी,….कुछ तो है ।।

बापू – माँ का शक्ल दागी हो गया है।
मैली चादर रामनामी ,….कुछ तो है ।।

है खबर शायद इलेक्शन हांरने की।
देखिये बद इंतजामी,…. कुछ तो है ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com

One thought on “ग़ज़ल

  • महातम मिश्र

    बहुत खूब आदरणीय नविन मणि त्रिपाठी जी, वाह

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