ग़ज़ल
फिर तिरंगे में सुनामी,…. कुछ तो है ।
देश में पलता हरामी,…. कुछ तो है ।।
तुम हुए आज़ाद बस कहते रहो ।
तेरी फितरत में गुलामी,….कुछ तो है ।।
फिर धुआं दिखने लगा संसद में है।
उसकी आदत में निजामी,….कुछ तो है।।
मज़हबी साया में देखो हुश्न बेपर्दा हुआ ।
हो गयीं वह भी किमामी,…..कुछ तो है ।।
जिसकी सत्ता थी नहीं उसको कबूल।
दे रहा है वो सलामी ,….कुछ तो है ।।
पुख्ता सबूतो पर मिली फाँसी उसे ।
क्यों हुई ये ऐहतरामी,….कुछ तो है ।।
बापू – माँ का शक्ल दागी हो गया है।
मैली चादर रामनामी ,….कुछ तो है ।।
है खबर शायद इलेक्शन हांरने की।
देखिये बद इंतजामी,…. कुछ तो है ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी
बहुत खूब आदरणीय नविन मणि त्रिपाठी जी, वाह