बदलते रिश्ते
पल-पल मैं बदलती हुई हमने,
यहाँ हर रिश्ते की तस्वीर देखी!
अपनेपन की चाहत मैं देखो,
खुद मैं ही उलझी जिंदगी देखी!
कितना बे-मुरब्बत हो गया है,
देखो आज का हर इंसान यहाँ!
न जज्बातों का कोई मोल है,
खिलवाड़ है हर एहसास यहाँ!
इंसानियत की कब्र खुदी है,
आँसू बहा रही, मानवता यहाँ!
ऊपर उठने की चाह मैं देखो ,
इंसान कुचल रहा, ईमाँन यहाँ!
हमने पल भर मैं, गढ़ती हुई,
हर रिश्ते की नयी तकदीर देखी!
अपनेपन की चाहत मैं देखो,
उलझी हुई हर जिंदगी देखी!
“आशा” किस पर करें यकींन,
किसको कहें हम अपना यहाँ!
अपने-अपने स्वार्थ की खातिर,
हमनें रिश्तों की नई तस्वीर देखी!
पल-पल मैं बदलती हुई हमने,
यहाँ हर रिश्ते की तस्वीर देखी!
…राधा श्रोत्रिय “आशा”
अच्छी कविता !