कविता

बदलते रिश्ते

 

पल​-पल मैं बदलती हुई हमने,
यहाँ हर रिश्ते की तस्वीर देखी!

अपनेपन की चाहत मैं देखो,
खुद मैं ही उलझी जिंदगी देखी!

कितना बे-मुरब्बत हो गया है,
देखो आज का हर इंसान यहाँ!

न जज्बातों का कोई मोल है,
खिलवाड़ है हर एहसास यहाँ!

इंसानियत की कब्र खुदी है,
आँसू बहा रही, मानवता यहाँ!

ऊपर उठने की चाह मैं देखो ,
इंसान कुचल रहा, ईमाँन​ यहाँ!

हमने पल भर मैं, गढ़ती हुई,
हर रिश्ते की नयी तकदीर देखी!

अपनेपन की चाहत​ मैं देखो,
उलझी हुई हर जिंदगी देखी!

“आशा” किस पर करें यकींन​,
किसको कहें हम अपना यहाँ!

अपने-अपने स्वार्थ की खातिर​,
हमनें रिश्तों की न​ई तस्वीर देखी!

पल​-पल मैं बदलती हुई हमने,
यहाँ हर रिश्ते की तस्वीर देखी!

…राधा श्रोत्रिय​ “आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

One thought on “बदलते रिश्ते

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

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