कविता

मरने के बाद

रूह निकल गयी तन से
मन घुमता है गली गली
सुन रहा है अपना अतीत
लोगों के मुँह से बुरी भली
जिन्दगी का मतलब समझ आया मरने के बाद
क्या खोया क्या पाया समझ आया
मरने के बाद
मन भटक रहा है तन पाने को
खूबसुरत दुनिया को गले लगाने को
जीते जी जो भटक गया था
वो मरकर मन को भटका रहा है
साथ कोई नही देता मन उलझन में अटका रहा है
इसी को कहते है संसार का झमेला
आना है अकेले और जाना है अकेला
दुनिया के लोग उलझन बढ़ाते है
मरने के बाद
“राम नाम सत्य है ”
पाठ पढ़ाते है

कन्हैया प्रसाद तिवारी

परिचय कन्हैया प्रसाद तिवारी भूतपूर्व वारंट अफिसर भारतीय वायु सेना पता हथडीहाँ रोहतास बिहार

One thought on “मरने के बाद

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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