आत्मकथा

आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 38)

दीपांक का इंजीनियरिंग में प्रवेश

मैं लिख चुका हूँ कि दीपांक इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए कोचिंग कर रहा था। उसकी कोचिंग अच्छी थी और अध्यापक बहुत मेहनत से पढ़ाते थे। लेकिन दुर्भाग्य से उसके भौतिक विज्ञान के शिक्षक का दुर्घटना में देहान्त हो गया। उनकी जगह कोचिंग में जो दूसरे अध्यापक आये, वे उतने अच्छे नहीं थे। इससे दीपांक की तैयारी कमजोर हो गयी। वह 2007 में आई.आई.टी. की प्रवेश परीक्षा में बैठा। गणित और रसायन विज्ञान में उसके अंक अच्छे थे, परन्तु भौतिक विज्ञान में क्वालीफाई नहीं कर पाया। एआईईईई में उसकी रैंक अच्छी थी, पर इतनी अच्छी नहीं थी कि किसी सरकारी नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ टैक्नोलाॅजी में उसको प्रवेश मिल जाता।

इसलिए हमारा विचार उसे किसी अच्छे प्राइवेट कालेज में प्रवेश दिलाने का हुआ। सौभाग्य से उसे राजपुरा (पंजाब) में स्थित चितकारा इंस्टीट्यूट में कम्प्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग में बी.टेक. में प्रवेश मिल गया। राजपुरा चंडीगढ़/पंचकूला से मुश्किल से 25 किमी दूर है और कालेज की बसें दोनों जगह से आती-जाती हैं। इस संस्थान की ख्याति इस बात में थी कि विद्यार्थियों को बहुत कुछ सिखाया जाता था और कोर्स पूरा करने से पहले ही उनकी अच्छी प्लेसमेंट हो जाती थी। अन्य सरकारी या प्राइवेट संस्थानों में यह बात नहीं थी। दीपांक का प्रवेश हमने उसमें करा दिया। उसकी काउंसलिंग जालंधर में हुई थी, जहाँ मुझे दो बार जाना पड़ा था।

चितकारा इंस्टीट्यूट ठीक वैसा ही निकला, जैसी उसकी ख्याति है। दीपांक बहुत कुछ सीखने लगा और स्वतंत्र रूप से वेबसाइट भी डिजायन करने लगा। पढ़ाई के साथ-साथ वह अन्य बहुत से कार्य कर रहा था और सीख रहा था। उसने एक प्रोजेक्ट के रूप में एक ऐसी वेब साइट बनायी जिसमें किसी होटल शृंखला में किसी भी शहर से किसी भी कमरे का आरक्षण हो सकता था तथा और भी कई कार्य हो सकते थे। दीपांक को ऐसे कार्य करते देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता होती थी।

दीपांक को साथी भी अच्छे मिल गये थे। उसने 5-6 लड़कों का समूह बना लिया था, जो पंचकूला और आसपास ही रहते थे। सभी बहुत ही योग्य और मेहनती हैं। वे हमारे घर भी आया करते थे। इससे मैं दीपांक की प्रगति और संगति पर नजर रखता रहता था। उसकी फीस लगभग 85 हजार प्रतिवर्ष थी। बस का किराया और पढ़ायी का विविध खर्च मिलाकर मुझे हर साल लगभग 1 लाख 20 हजार रुपये उसकी पढ़ाई के ऊपर खर्च करने पड़ते थे। लेकिन मुझे प्रसन्नता है कि मुझे इस खर्च की व्यवस्था करने में कोई कठिनाई नहीं होती थी। कभी-कभी अपनी पुस्तकों से होने वाली छुटपुट आय से इसमें काफी सहायता मिल जाती थी।

मोना की पढ़ाई

हमारी पुत्री आस्था (मोना) पंचकूला सेक्टर 15 के न्यू इंडिया सीनियर सेकेंडरी गर्ल्स स्कूल में पढ़ रही थी। कक्षा 7 और 8 में वह अपनी कक्षा में प्रथम या द्वितीय रही। उस स्कूल में हिन्दी और अंग्रेजी दोनों माध्यमों की अलग-अलग कक्षायें होती थीं। अभी तक मोना हिन्दी माध्यम से पढ़ रही थी। लेकिन उसका मन कक्षा 9 में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने का था, क्योंकि आगे की पढ़ाई करने के लिए अंग्रेजी माध्यम आवश्यक था। अतः हमने वहाँ की अध्यापिकाओं से सलाह लेकर उसे कक्षा 9 में अंग्रेजी माध्यम में प्रवेश करा दिया। पहले मैं शंकित था कि पता नहीं यह अंग्रेजी माध्यम चला पायेगी कि नहीं। लेकिन सौभाग्य से वह सरलता से अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने लगी और पिछली कक्षाओं की तरह ही अपनी कक्षा में प्रथम या द्वितीय आने लगी।

पढ़ाई के साथ ही मोना विविध गतिविधियों में भी भाग लेती थी, जैसे नाटक, गीत, नृत्य, चित्रकला प्रतियोगिता आदि। इनमें उसे कई बार पुरस्कार और प्रमाण-पत्र मिले। एक बार तो जिला स्तरीय चित्रकला प्रतियोगिता में उसे द्वितीय पुरस्कार मिला था।

कक्षा 10 में उसने अंग्रेजी माध्यम से ही सन् 2009 में हरियाणा बोर्ड की परीक्षा दी और लगभग 84 प्रतिशत अंक प्राप्त किये। हमें बहुत प्रसन्नता हुई। गणित में उसके अंक 100 में से पूरे 100 आये थे। वैसे एक विषय में उसके अंक आशा से बहुत कम थे। इसलिए हमने उस विषय की काॅपी फिर से जँचवायी और सौभाग्य से इस विषय में उसके 11 अंक बढ़ गये। अब उसके अंकों का प्रतिशत 85 हो गया था। परन्तु इसका तत्काल कोई फायदा नहीं मिला, क्योंकि नया परिणाम दो महीने बाद आया था और तब तक उसका प्रवेश पहले प्रतिशत के आधार पर ही हो चुका था।

वह साइंस नहीं पढ़ना चाहती थी, बल्कि काॅमर्स चाहती थी। मैंने भी अपनी पसन्द उसके ऊपर नहीं थोपी और कह दिया कि जो विषय वह पढ़ना चाहती है, वही पढ़े। इंटर में, जिसे चंडीगढ़ और आसपास प्लस-1 और प्लस-2 कहा जाता है, काॅमर्स की पढ़ाई के लिए पंचकूला में कोई काॅलेज नहीं था। इसलिए उसका एडमीशन चंडीगढ़ के किसी कालेज में कराना था। चंडीगढ़ में कई सरकारी कालेज हैं, जिनमें सेक्टर 16 और सेक्टर 19 के लड़कियों के सरकारी कालेज काॅमर्स के लिए सबसे अच्छे माने जाते हैं। वहाँ पंचकूला से जाना भी आसान है, क्योंकि सीधी बसें जाती हैं और प्राइवेट बसें या कारें भी मासिक शुल्क के आधार पर बच्चों को ले जाती हैं। हमने दोनों जगह फार्म भर दिया और सौभाग्य से बिना कोई भागदौड़ किये उसे सेक्टर 16 के स्कूल में प्लस-1 अर्थात् कक्षा 11 में प्रवेश मिल गया।

सरकारी स्कूलों में पढ़ाई तो बहुत कम होती है, परन्तु फीस नाम-मात्र की ही होती है, जबकि प्राइवेट स्कूलों में भी वैसी ही पढ़ाई होती है और फीस बहुत होती है। कोचिंग दोनों तरह के स्कूलों के लगभग सभी उन बच्चों को करनी पड़ती है, जो कैरियर बनाना चाहते हैं। इसलिए सरकारी स्कूलों में प्रवेश के लिए बहुत मारा-मारी होती है। लेकिन मोना का अंक प्रतिशत अच्छा था, इसलिए पहली सूची में ही उसे प्रवेश मिल गया और वह विद्यालय जाने लगी।

इसके साथ ही उसे सेक्टर 10 में एक कोचिंग में भी प्रवेश दिलाया गया, जो काॅमर्स के लिए अच्छा माना जाता था। कोचिंग तक जाने की सुविधा के लिए मोना को एक स्कूटी खरीदवायी गयी। एक सप्ताह में ही उसने उसे चलाना सीख लिया। प्रारम्भ में वह बहुत डरती थी, लेकिन धीरे-धीरे उसका डर निकल गया और वह मजे में चलाने लगी। सौभाग्य से कभी भी उसे दुर्घटना जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा।

श्रीमतीजी की दुर्घटना

मैं लिख चुका हूँ कि ड्राइवर हट जाने के बाद श्रीमतीजी मुझे प्रतिदिन कार में आॅफिस छोड़ने और लेने आया करती थीं। रास्ता मुश्किल से 1 किमी का है और सड़क भी लगभग खाली रहती है। इसलिए सड़क पर कभी हमें दुर्घटना का सामना नहीं करना पड़ा। परन्तु एक बार जब श्रीमती जी मुझे लेने आ रही थीं, तो बी.ई.एल. की कालोनी के सामने से हमारे संस्थान को जाने वाली गली में एक मैटाडोर सामने से बहुत तेजी से चलती आ रही थी। खतरा सामने देखकर श्रीमतीजी ने तेजी के गाड़ी को बायीं ओर मोड़ लिया, हालांकि पूरा नहीं मोड़ पायीं, क्योंकि वहाँ कँटीले तार लगे हुए थे। फिर भी जितना मोड़ सकीं, उतने से ही एक खतरनाक दुर्घटना बच गयी और मैटाडोर हमारी गाड़ी के पिछले हिस्से से टकरायी। अगर श्रीमतीजी ने तेजी से मोड़ी न होती, तो यह निश्चित था कि आमने-सामने की भयंकर टक्कर होती और उससे श्रीमतीजी का बचना मुश्किल था। भगवान ने ही उस दिन उनकी रक्षा की।

इस दुर्घटना के बाद मैटाडोर वाला अपनी गाड़ी भगा ले गया और उसका नम्बर भी पढ़ा नहीं जा सका। हमने पुलिस में रिपोर्ट भी लिखायी, लेकिन नम्बर न होने के कारण पुलिस ने भी हाथ खड़े कर दिये।

लेकिन एक दिन दुर्घटना हो ही गयी। श्रीमतीजी एक पड़ोसन के साथ अपने ही सेक्टर के बाजार को जा रही थीं। तभी किसी गली में से बायीं ओर से एक बाइक सवार तेजी से आया। वह बाइक चलाते समय मोबाइल से बात करता जा रहा था, इससे उसने गाड़ी की आवाज और हार्न नहीं सुना। बाइक बड़ी जोर से हमारी कार से आगे के भाग से टकरायी। इससे कार का सामने का और बगल का आगे का शीशा तो टूटा ही, बोनट भी कई जगह से पिचक गया। पड़ोसन और श्रीमतीजी दोनों बाल-बाल बच गयीं। लेकिन बाइक सवार के पैर में फ्रैक्चर हो गया। वह गिरने के बाद बार-बार ‘मेरा मोबाइल’ ‘मेरा मोबाइल’ चीख रहा था। उसके एक हाथ में मोबाइल था, जिससे वह ब्रेक नहीं लगा सका। उसकी बाइक का आगे का कवर तथा कुछ अन्य पार्ट टूट गये थे।

संयोग से वह आदमी श्रीमतीजी की किटी पार्टी की एक सदस्या का कर्मचारी था। इस दुर्घटना के कारण दोनों में झगड़ा भी हो गया। मामला पुलिस में भी गया। ऐसे मामलों में हमेशा कार सवार की गलती मानी जाती है, चाहे किसी भी गलती हो। अन्त में दोनों पक्षों में यह समझौता हुआ कि उनकी बाइक की मरम्मत हम करायेंगे और इलाज के बाद पैर ठीक नहीं हुआ तो उसका मुआवजा भी हम देंगे। अपनी गाड़ी की रिपेरिंग तो हमें करानी ही थी। उसका बीमा था, जिससे खर्च कम पड़ा। बाइक का तो बीमा भी नहीं था। उसकी रिपेरिंग का सारा खर्च हमें देना पड़ा। लेकिन सौभाग्य से उस बाइक सवार का पैर ठीक हो गया। इससे आगे का खर्च हमें नहीं देना पड़ा।

इस दुर्घटना के बाद श्रीमतीजी गाड़ी चलाने में बहुत घबड़ाती थीं, हालांकि गलती उनकी नहीं थी। वे कई महीने बाद ही सामान्य हो पायीं।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

8 thoughts on “आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 38)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई ,आप के बच्चे बहुत होनहार हैं ,आप बहुत भागयशाली हैं .दुर्घटनाओं की बात लिखी ,ऐसी बातों से बहुत गड बड हो जाता है . पिछले सोमवार मेरा बेटा मेरे घर की और आ रहा था कि सड़क पर खड़ी एक कार वाले ने अचानक कार की डोर खोल दी .जिस से बेटे की कार बहुत डैमेज हो गई .कार वाला गोरा अपनी गलती माँ गिया लेकिन बाद में मुक्कर गिया .बेटे को हफ्ते की छुटी थी और सारी छुटी इसी बात में गुज़र गईं .अब एक और गाडी अगले शनि को लेने जाना है जो खरीद ली है . जब एक्सीडैंट होता है तो बहुत परेशानी होती है .

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार भाई साहब! प्रभु की कृपा और गुरुजनों के आशीर्वाद से ही योग्य संतानें प्राप्त होती हैं।
      दुर्घटनाओं के बारे में आपने सही लिखा है। मैं अनेक बार भयंकर दुर्घटनाओं से बचा हूँ।
      आपके पुत्र की कार दुर्घटना में खराब हे गयी जानकर दुख हुआ। उस गोरे को दंड मिलना चाहिए।

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते महोदय। आज की पूरी क़िस्त पढ़ी। अच्छी लगी। एक वेद मंत्र याद हो आया। इसमें कहा गया है कि वेदो की स्तुति अर्थात अध्ययन वा आचरण करने वाले को क्रमशः आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रम्ह लोक अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रजा का अर्थ है उत्कृष्ट या प्रकृष्ट संतान। आपका जीवन सत्यमय है, अतः आपके जीवन में वेदों का आचरण होने से आपने इस मंत्र को कुछ कुछ सिद्ध किया हुआ है। मंत्र है – स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्ताम् पावमानी द्विजानाम् आयुः प्राणं पशुम् कीर्तिम द्रविणम् ब्रम्हवर्चसं मह्यंदत्वा व्रजत ब्रम्ह्लोकम। किसी दुर्घटना होने पर रक्षा होना भी परिवार के लोगो के पुण्य कर्मों का परिणाम होता है। आपका परोपकारमय जीवन एक कारण हो सकता है। आज की आत्मकथा का भाग अच्छा लगा। हार्दिक धन्यवाद।

    • मनमोहन कुमार आर्य

      वेद मन्त्र में प्राणं और पशुम् के मध्य प्रजाम् शब्द लिखने में छूट गया। कृपया इसे जोड़कर पढ़े। असुविधा के लिए खेद है। आज एडिट वाला आइकॉन दिखाई नहीं दे रहा है। सादर।

      • विजय कुमार सिंघल

        आपने पासवर्ड से लॉगिन नहीं किया होगा। इसलिए एडिट का विकल्प दिखायी नहीं दे रहा होगा। कृपया फिर से लॉग इन करें।

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम, मान्यवर ! मुझे भी ऐसा लगता है कि मेरे ऊपर प्रभु की विशेष कृपा है, जिसके कारण मैं बड़े बड़े संकटों से बच जाता हूँ। यह बात और भी कई सज्जनों ने मुझसे कही है। आज आपने पुष्टि कर दी। आभार !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बच्चें बेहद होनहार हैं उन्हें मेरी अशेष शुभकामनायें
    दुर्घटनायें हमेशा दूसरों की गलतियों से होती है

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार बहिन जी! बच्चे प्रभु की देन हैं। उसके लिए मैं उसका बार बार धन्यवाद करता हूँ।

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