गांव की माटी, तुझे नमन…..
गांव की माटी, तुझे नमन
गांव की माटी, तुझे नमन
तुझमे आज भी दिखता है
मुझको मेरा बचपन
गांव की माटी, तुझे नमन…..
धानी चुनरिया ओढ,जवांनी पर इतराती फसलें।
हरियाली के मखमल से, सबको हर्षाती फसलें॥
अन्न धान से भरे हुए, खलिहान लुभाते मन …..
गांव की माटी, तुझे नमन…..
भोर सवेरे सूरज से पहले, जीवन परवान चढे ।
अंगडाई लेती फसलों को देख, कदम भर चाव बढे॥
धरती की गोदी मे पाता, जीवन हर जीवन…
गांव की माटी, तुझे नमन……
कलरव करते गीत सुनाते, पंछी खुशी लुटाते है।
अब भी तालाबों में नील कमल खिलते मुस्काते है॥
आज भी कोयल गीत सुनाती है, उपवन उपवन…..
गांव की माटी, तुझे नमन….
संसकार का थाल सजाये, गोरी मंगल गाती है ।
सजा के सपनों की डोली, पगडंडी पर इठलाती है।
ताक रही है घूंघट से, छूने को नील गगन…
गांव की माटी, तुझे नमन….
गांव की माटी, तुझे नमन…..
सतीश बंसल
सुंदर रचना