कवितापद्य साहित्य

माँ

तेरी कमी खलती रहती है ,
ऐसे तुम साथ तो नही ,
पर मन से दुर भी नही ,
तेरी ममतामयी ऑचल हमेशा ,
मेरे सरो के उपर सदा ही रहता है ,
तेरे ही आर्शीवाद से आगे बढ रही हूँ,
तुम तन्हा हो मेरे विन,
पर मेरी तन्हाई को भी समझती हो
मेरी हर कामयाबी मे तुम साथ हो
तेरी ही मुखडा हर तरफ नजर आती है
मै खामोश हूँ क्योकि विवशता है,
पर तेरी खामोशी को भी समझती हूँ ,
अँधेरे से लडकर उजालो मे जाना ,
तुम ही हमे सिखालाई. हो,
मेरे दुखो को देखकर दुखी ,
और मेरे खुशी को देखकर खुश हो जाती हो,
हमे मंजील तक पहुँचाने मे ,
तुम. कभी पिछे नही हटती हो,
यही तो विशेषता है मॉ तेरी,
कि तुम. हमे खुब भॉती हो !
……..निवेदिता चतुर्वेदी…….

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

One thought on “माँ

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर !

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